________________ ( 246 ) सो उक्त सूत्रपाठ के देखने से यह बात स्वतः सिद्ध हो जाती है किकाल की अपेक्षा से यह लोक उत्पत्ति और नाश से रहित है क्योंकिप्रागभाव के मानने से प्रध्वंसाभाव अवश्यमेव माना जा सकेगा / जिसका प्राभगाव ही सिद्ध नहीं होता है उस का प्रध्वंसाभाव किस प्रकार माना जाए ? हाँ, यह बात भली भाँति मानी जासकती है कि प्रत्येक पर्याय उत्पत्ति और विनाश धर्म वाली है किन्तु पर्यायों (दशाओं) के उत्पन्न और विनाश काल को देखकर द्रव्य पदार्थ उत्पत्ति और नाश धर्म वाला नहीं माना जा सकता / जैसे कि-जीव द्रव्य नित्य रूप से सदैव काल विद्यमान रहता है किन्तु जन्म और मरण रूप पर्यायों की अपेक्षा से एक योनि में नित्यता नहीं रख सकता / इसी प्रकार प्रत्येक पदार्थ के विषय में जानना चाहिए / __ यदि ऐसे कहा जाय कि-सर्व पदार्थ उत्पत्ति धर्म वाले हैं तो फिर भला कर्ता के बिना जगत् उत्पन्न कैसे होगया? इस के उत्तर में कहा जा सकता है कि क्या प्रकृति परमात्मा और जीव पदार्थ भी कर्ता की आवश्यकता रखते है अर्थात् इन को भी उत्पत्ति माननी चाहिए? यदि ऐसे कहा जाए कि ये तीनों पदार्थ अनादि है, अतः इन की उत्पत्ति नहीं मानी जा सकती, तो इस के उत्तर में कहा जा सकता है कि-इसी प्रकार काल से जगत् भी अनादि है; क्योंकि जगत् भी षद्रव्यों का समूह रूप ही है / अपितु जो पर्याय है वह सादि सान्त है / इसलिये जगत् में नाना प्रकार की रचना दृष्टिगोचर हो रही है। जैन-शास्त्रों ने एक लोक के तीन विभाग कर दिए हैं, जैसे कि-ऊर्वलोक 1, मध्य लोक 2 और अधोलोक 3 / ऊर्ध्व लोक में 26 देवलोक हैं; जिन का सविस्तर स्वरूप जैन-सूत्रों से जानना चाहिए / वहाँ पर देवों के परम रमणीय विमान हैं। तिर्यक्लोक में असंख्यात द्वीप समुद्र हैं, जो एक से दूसरा पायाम विक्रम में दुगुणा 2 विस्तार वाला है। उनमें प्रायः पशु और ( वानव्यन्तर) वानमंतर देवों के स्थान है, किन्तु तिर्यक् लोक के अढ़ाई द्वीप में प्रायः तिर्यञ्च और मनुष्यों की वस्ति है। इसीलिये इन्हें मनुष्यक्षेत्र तथासमयक्षेत्र भी कहते हैं। क्योंकि समय-विभाग इन्हीं क्षेत्रों से किया जाता है मनुष्य और तिर्यंचों का इस में विशेष निवास है। इन क्षेत्रों में दो प्रकार से मनुष्यों की वस्ति मानी जाती है। जैसे किकर्मभूमिक मनुष्य और अकर्मभूमिक मनुष्य | जो अकर्मभूमिक मनुष्य होते हैं वे तो केवल कल्प वृक्षों के सहारे पर ही अपनी श्रायु पूरी करते हैं। इन की सर्व प्रकार से खाद्य पदार्थों की इच्छा कल्पवृक्ष ही पूरी करदेते हैं, वे