________________ ( 247 ) खंदर्य कच्चाय० एवं वयासी से नूणं तुमं खंदया। सावत्थीए नयरीए पिंगलएणं णियंठेणं वेसालिय सावएणं इणमक्खेवं पुच्छिए मागहा / किं सअंत लोए अणंते लोए एवं तं जेणेव मम अंतिए तेणेव हव्वमागए, से नूणं खं दया / अयमहे समहे? हंता अत्थि जे वियते खंदया। अयमेयारूवे अब्भथिए चित्तिए पथिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-किं स अंते लोए अगते लोए ? तस्स वियणं अयमछे--एवंखलु मए खंदया ! चउबिहे लोए पन्नते तंजहा-दन्यत्रो खेत्तो कालो भावनोदव्यत्रोणं एगे लोए स अंते ? खत्तत्रोणं लोए अंसंखेज्जाओ जोयण कोडाकोडीओ आयाम विक्खंभेणं असंखेज्जाओ जोयण कोडा कोडीनो परिक्खेवेणं पत्थिपुणसे अंतेर कालओ णं लोएण कयाविण आसी न कयाविन भवति न कयावि न भविस्सति भविंसु य भवति य भविस्सइ य धुवे णितिय सासए अक्खए अचए अवहिए णिचे णत्थिपुणसे अंते // 3 // भावो णं लोए अणंता वरण पज्जवा गंध. रस० फास पज्जवा अणंता संठाणपज्जया अणंता गुरुयलहुय पज्जवा अणंता अगुरुयलहुय पज्जवा नत्थिपुण से अंते 4 सेतं खंदगा! दव्वो लोए स अंते खेत्तो लोए स अंते कालो लोए अणंते भावो लोए अणते। ___ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र शत्तक 2 उद्देश // 1 // स्थंककचरित। भावार्थ-जिस समय स्कन्धक परिवाजक श्रीश्रमण भगवान् महावीर स्वामी के समीप प्रश्नों का समाधान करने के वास्ते आए, उस समय श्रीश्रमण भगवान् महावीर स्वामी नित्य भोजन करने वाले थे अर्थात् अनशनादि बतों से युक्त नहीं थे। अतः उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी नित्य पाहार करने वालों का शरीर प्रधान जैसे शृंगारित होता है अतः श्रृंगारित कल्याण रूप, शिवरूप, धन्यकारी मंगलरूप शरीर की लक्ष्मी से युक्त विना अलंकारों से विभूपित लक्षण और व्यंजनों से उपेत लक्ष्मी द्वारा अतीव सौंदर्यता प्राप्त कर रहा था अर्थात् सौदर्यता को प्राप्त हो रहा था। तदनन्तर वह कात्यायन गोत्रीय स्कन्धक श्रमण भगवान् नित्य आहार करने वालों के प्रधान यावत् अतीव उपशोभायमान शरीर को देख कर हर्पचित्त वा संतुष्ट 1 'वियट्ट भोइात्त' व्यावृत्ते 2 सूर्ये भुड इत्येवं शोलो व्यावृतभोजी प्रतिदिनभोजीत्यर्थः / अभयदेवीया वृति //