________________ ( 244 // ज्ञान से अपरिचित होने के कारण जैनमत को नास्तिकों की गणना में गणन करते हैं। यद्यपि उन के कुतकों से जैन-मत के सम्यग् सिद्धान्त को किसी प्रकार की भी क्षति नही पहुंचती तथापि अनभिज्ञ आह्माओं की अनभिज्ञता काभली प्रकार परिचय मिल जाता है। सो जिस प्रकार जैन-सिद्धान्त जगत्-विषय अपना निर्मल और सद युक्तियों से युक्त सिद्धान्त रखता है उस सिद्धान्त का शास्त्रीय प्रमाणों से इस स्थान पर दिग्दर्शन कराया जाता है। ___यह बात जैन-सिद्धान्त पुनः 2 विशद भावों से कह रहा है कि इस अनादि जगत् का कोई निर्माता नहीं है / जैन-मत को यह कोई आग्रह तो है ही नहीं कि-निमार्ता होने पर निर्माता न माना जाए; परन्तु युक्ति वा आगम प्रमाणों से निर्माता सिद्ध ही नहीं हो सकता / इतना ही नहीं किन्तु निर्माता ऐसे ऐसे दूषणों से ग्रसित हो जाता है जिससे वादी लोगों को निर्माता को शुद्ध रखने के लिये नाना प्रकार की निर्वल और असमर्थ कुयुक्तियों का आश्रय लेना पड़ता है। अतएव पक्षपात छोड़ कर अब इस स्थान पर जैनजगत् के विषय को ध्यानपूर्वक अनुभव द्वारा विचार कर पठन कीजिये साथ ही सत्यासत्य पर विचार कीजिये। क्योंकि-आस्तिक का कर्तव्य है कि-सर्व भावों पर भली प्रकार से विचार करे। अण्णादीयं परिणाय अणवदग्गेति वा पुणो सासय मसासए वा इति दिष्टिं न धारए / सूत्रकृतांगसूत्र द्वितीय श्रुतस्कन्ध अ. 5 गा. 2 // दीपिका टीका-(अणादीयमिति) अनादिकं जगत् प्रमाणैः सांख्याभिप्रायेण परिज्ञाय अनवदग्रमनंतं च तन्मत एव / नात्वा सर्वमिदं शाश्वतं बौद्धाभिप्रायेण चाऽशाश्वतं इति दृष्टि न धारयेत् एनं पक्षं नाऽश्रयेत् // 2 // / भावार्थ-इस गाथा में इस बात का प्रकाश किया गया है कि-अनादि और अनंत संसार को भली प्रकार जान कर फिर सांख्यमत के आश्रित हो कर सर्व पदार्थ एकान्त शाश्वत हैं और वौद्ध-मत के आश्रित होकर सर्व पदार्थ एकान्त अशाश्वत हैं। इस प्रकार की दृष्टि धारण न करनी चाहिए / क्योंकिसांख्यमत का यह सिद्धान्त है कि-सर्व पदार्थ एकान्त भाव से शाश्वत हैं और बौद्धमत का सिद्धान्त है कि-सर्व पदार्थ क्षणविनश्वर हैं / जब हम दोनों सिद्धान्तों को एकान्त नय से देखते हैं। तव उक्त दोनों सिद्धान्त सद् युक्तियों से गिर जाते हैं। क्योंकि-सांख्यमत का शाश्वतवाद और वौद्धमत का