________________ ( 235 ) भेद उक्त विषय में संक्षेप रूप से समवतार होजाते हैं जैसेकि 1 द्रव्य से धर्मास्तिकाय एक द्रव्य है 1, क्षेत्र से लोकपरिमाण है 2, काल से अनादि अनन्त है ३,भाव से अरूपी है 4, गुण से गति इस का लक्षण है 5 / दृष्टान्त जैसे पानी में मत्स्य / 2 द्रव्य से अधर्मास्तिकाय एक द्रव्य है 1, क्षेत्र से लोकपरिमाण 2, काल से अनादि अनंत 3, भाव से अरूपी, गुण से स्थिति इस का लक्षण है 5 / दृष्टांत जैसे पथिक को वृक्ष का श्राधार। 3 द्रव्य से आकाशास्तिकाय एक 1, क्षेत्र से लोकालोक परिमाण २,काल से अनादि अनंत 3, भाव से अरूपी 4, गुण से आकाश का अवकाश देने का स्वभाव 5 / दृष्टान्त जैसे दुग्ध में शर्करा (मिट्ठा)। 4 द्रव्य से कालद्रव्य अनंत 1, क्षेत्र से अढ़ाई द्वीप परिमाण 2, काल से अनादि अनंत 3, भाव से अरूपी४, गुण से वर्तनालक्षण 5 / दृष्टान्त-जैसे नूतन पदार्थ को कालद्रव्य पुराना करता है।। 5 द्रव्य से जीवद्रव्य जीवास्तिकाय अनन्त 1, क्षेत्र से चतुर्दशरज्जु परिमाण 2 काल से अनादि अनन्त 3, भाव से अरूपी, गुण से चेतनालक्षण / द्रव्य से पुद्गलास्तिकाय अनंत 1, क्षेत्र से लोक परिमाणर,काल से अनादि अनंत 3. भाव से रूपी 4, गुण से सड़ना, पड़ना, मिलना, गलना, विध्वंसन होना ही इस का लक्षण है 5 / / ' इस प्रकार उक्न द्रव्यों के स्वरूप को जाना जाता है। क्योंकि प्रत्येक द्रव्य अपनी 2, पर्यायों का कर्त्ता है। अव इस स्थान पर आगमसार ग्रंथ के अनुसार षद् द्रव्यों के विषय में कहा जाता है। जैसेकि-पट् अनादि हैं। उनमें पांच अजीव और चेतनालक्षण वाला जीव है। परन्तु पट् द्रव्यां के गुण निम्न प्रकार से हैं जैसोक-धर्मास्तिकाय के चार गुण हैं, यथा-अरूपी 1, अचेतन 2, अक्रिय 3 और गतिलक्षण 4 / अधर्मास्तिकाय के भी चार गुण हैं-जैसेकि-अरूपी 1, अचेतन 2, अक्रिय ३और स्थितिलक्षण 4 / आकाशास्तिकाय के चार गुण-जैसकि-अरूपी 1, अचेतन 2, अक्रिय 3 और अवगाहनगुण 4 / कालद्रव्य के चार गुण-अरूपी 1. अचेतन 2, अक्रिय 3 और नव पुराणादि वर्त्तनालक्षण 4 / पुद्गल द्रव्य के चार भेद रूपी:, अचेतन 2, सक्रिय 3, मिलना और विछुड़ना स्वभाव 4 / जीव द्रव्य के ४गुण अनंतनान 1, अनंतदर्शन 2, अनंतचारित्र 3, और अनंतवार्य / / ये छः द्रव्यों के गुण नित्य और ध्रुव हैं। किन्तु पद्व्यों के पर्याय निम्न प्रकार से हैं, जैसेकि-धर्मास्तिकाय के चार पर्याय है--स्कन्ध ?, देश 2, प्रदेश 3, और अगुरु लघु 4 / अधर्मा