________________ ( 188 ) लोभ तथा सम्यक्त्व मोहनीय, मिश्रमोहनीय और मिथ्यात्वमोहनीय ये सातों ही प्रकृति क्षयोपशम भाव में होजाती हैं। सारांश यह है कि कुछ तो उक्त प्रकृतियां क्षायिक होजाती हैं और कुछ उपशम होजाती हैं। जब सातों प्रकृतियां क्षयोपशम भाव में आजाती है तब उस आत्मा को सम्यग् दर्शन प्राप्त होजाता है / जिसके फलरूप उसमें निम्न लिखित पांच लक्षण प्रतीत होने लग जाते हैं। प्रशमसवेगनिर्वेदानुकपास्तिक्याभिव्यक्तिलक्षणं तदिति / धर्मविन्दु अ. 3 सू // 10 // वृत्ति-प्रशमः-स्वभावत एव क्रोधादिक्रूरकषायविषविकारकफलावलोकनेन वा तन्निरोधः / संवेगो-निर्वाणाभिलाषः / निर्वेदो-भवादुद्वेजनम् / अनुकंपा-दुःखितसत्वविषया कृपा / आस्तिक्यं तदेव सत्यं निशंक यज्जिनः प्रवेदितमिति प्रतिपत्तिलक्षणं ततः प्रशमसंवेगनिर्वेदानुकंपास्तिक्यानामभिव्यक्तिरुन्मीलनं लक्षणं स्वरूपसत्ताख्यापकं यस्य तत्तथा तदिति सम्यग् दशनम् // भावार्थ-इस सूत्र में सम्यक्त्वी आत्मा के पांच लक्षण वर्णन किये गए हैं। जैसेकि जिसने स्वभाव से ही क्रोधादि क्रूर कषायरूप विष के विकार के कटुक फलों को अवलोकन कर उक्त कषाय का निरोध कर लिया है उसे प्रशम कहते हैं 1 / जिस को निर्वाण पद की अभिलाषा है उसका नाम संवेग है 2 / संसार के जन्म और मरण के स्वरूप को जानकर जिसका आत्मा संसार चक्र से भयभीत हो रहा है उस का नाम निर्वेद है 3 / तथा दुःखित प्राणियों पर द्रव्य और भाव से दयाभाव करना उसे अनुकंपा कहते हैं 4 / एवं श्री जिनेन्द्र भगवान् ने जो पदार्थों का सत्य स्वरूप प्रतिपादन किया है वह निःशंक है, क्योंकि-श्री जिनेन्द्र भगवान् रागद्वेप से रहित, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हैं, जीवन्मुक्त हैं, उन्होंने जो कुछ पदार्थों का स्वरूप प्रतिपादन किया है, वह सर्वथा पक्षपात से रहित और निस्सन्देह है। जिसके इस प्रकार के भाव वर्त्त रहे हैं, उस का नाम आस्तिकता है / सो जिस आत्मा के प्रशम, संवेग, निर्वेद अनुकंपा और आस्तिक भाव भली प्रकार हृदय में स्थित हो उसे सम्यग्दृष्टि कहते हैं। आत्मा में जव आस्तिक भाव भली प्रकार अंकित होजाएं तब शेष गुण स्वयमेव श्राजाते हैं। क्योकिसमतापूर्वक विचार कर देखा जाय तो आस्तिक और नास्तिक ये दोनों मत जीवों के हैं, इन्ही के भेद और उपभेद विस्तार पाए हुए हैं। नास्तिक लोगों का मुख्योद्देश्य ऐहलौकिक सुखों का ही अनुभव करना सिद्ध है / क्योंकिवे अर्थ और काम की ही पूर्णतया उपासना करने वाले होते हैं क्योंकि