________________ ( 191 ) 3 विचिकित्सा अतिचार-पुण्य और पाप कर्मों के फल विषय सन्देह न करना चाहिए / जैसे कि जो धर्म-क्रियाएँ मैं करता हूं उसका फल होगा किंवा नहीं? कारण कि-जो कर्म किया गया है उसका फल तो अवश्यमेव भोगना पड़ेगा / इस लिये धर्म के कृत्य विषय सन्देह न करना चाहिए / इसी तरह जैन-भिक्षु को देख कर घृणा उत्पन्न नहीं करनी चाहिए जैसे कियह लोग स्नानादि क्रियाएं नहीं करते अतएव ये निंद्य तथा प्रदर्शनीय हैं इत्यादि भाव उत्पन्न न करने चाहिएं, क्योंकि-जैन-शास्त्र जल-स्नान से शारीरिक शुद्धि मानता है, नतु आत्म-शुद्धि / जब जैन-भिक्षुओं ने विषयविकारादि का सर्वथा परित्याग किया हुआ है तब उनको स्नानादि क्रियाओं के करने की क्या आवश्यकता है ? जब अशुचि आदि का काम पड़ता है तव वे जलादि से शुचि करते ही हैं / इसलिये मुनियों को देख कर घृणा उत्पन्न करने की जगह अन्तःकरण से यह विचार होना चाहिए कि हम लोग ग्रीष्म ऋतु में स्नानादि क्रियाओं के किये विना नहीं रह सकते, मुनिवर धन्य हैं, जो गर्म ऋतु में भी अपने शारीरिक संस्कार को छोड़ कर मन पर विजय प्राप्त कर शान्त मुद्रा धारण किये हुए हैं। 4 मिथ्याष्टिप्रशंसाचार-जो आत्मा नास्तिक हैं, सर्वज्ञोक्त वाणी को सत्य रूप नहीं मानते, सदैव काल विषयानंदी बन रहे हैं, उनकी प्रशंसा न करनी चाहिए / क्योंकि उनकी प्रशंसा करने से बहुत से भद्र प्राणी धर्म कृत्यों से विमुख होजायेंगे। एवं जो जिनाज्ञा से बाहिर होकर पाखंड रूप बहुतसा क्रियाकलाप करते हो वे भी प्रशंसा के योग्य नहीं हैं। ५परपाखंडी संस्तव-जो आत्मा जिनोक्त वाणी कोनही मानते, मिथ्यात्व क्रिया में निमग्न हो रहे हैं तथा भद्र लोगों को धर्म पथ से विचलित करके अानन्द मानते हैं, जूवा,मांस,मदिरापान, आखेटकर्म, वेश्या परस्त्रीगमन, चोरी आदि कुकृत्यों में लगे हुए हैं,उनका संग याविशेष परिचय प्राप्त नहीं करना चाहिए। अन्यथाधर्म में ग्लानि उत्पन्न होजायगी और उनके कुसंग के प्रभाव से धर्म में अरुचि होजायगी।शास्त्र-कारों ने आपत् धर्म के लिए कुछ भागार (संकेत) भी प्रतिपादन कर दिये हैं, जैसेकि रायाभिओगेणं गणाभियोगेणं बलाभिओगेणं देवयाभियोगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तिकंतारेणं। उपासकदशांग सूत्र अ० // 1 // भावार्थ-१ रायाभिओगेणं-राजा की आज्ञा से सम्यक्त्वधर्म से प्रतिकूल कोई कार्य कभी करना पड़ जाय तो सम्यक्त्व में दूषण नहीं लगेगा कारण कि-राजाज्ञा का पालन करना एक प्रकार का आपत् धर्म माना जाता