________________ ( 87 ) भिन्न 2 प्रकार से मानते हैं जैसे कि कोई 2 तो पद् दर्शन इस प्रकार से मानता है कि पूर्वमीमांसा 1 और उत्तरमीमांसा 2 निरीश्वर सांख्य 3 और सेश्वरसांख्यधपोडश पदार्थ के मानने वाला नैयायिक ५और सप्त पदार्थ के मानन वाला नैयायिक 6 इस प्रकार से दर्शन षट् होते हैं। कोई इस प्रकार से मानता है कि-चौद्ध मत की चार शाखाएं हैं जैसे कि-सौत्रान्तिक 1 वैभाषिक 2 योगाचार 3 और माध्यमिक 4 जैन 5 और लौकायतिक 6 इस प्रकार पट् दर्शन होते हैं तथा पूर्वोक्त और यह षट् दर्शन मिल कर सर्व दर्शन द्वादश होते है / अपितु कोई 2 तो यह भी कहता है कि-मीमांसक 1 सांख्य 2 नैयायिक 3 वौद्ध 4 जैन ५और चार्चाक् 6 इस प्रकार षट् दर्शन होते हैं। परं च प्रकृत निबंधकार ने तो-चौद्ध, नैयायिक, सांख्य, जैन, वैशेषिक और जैमिनीय-इस प्रकार पदर्शन प्रतिपादन किये है, किन्तु--सर्व दर्शन संग्रह और सर्व शिरोमणि श्रादि निबंधों में तो अनेक दर्शन कथन किये गए हैं अर्थात् यह नियम नहीं देखा जाता कि केवल दर्शन इतने ही होते हैं / इसी वास्ते आचार्य के लिये"परसमयवित्" शब्द लिखा गया है कि वह जैनमत के अतिरिक्त परमतके शास्त्रों का भी भलीप्रकार से परिचित हो, जैसे कि-पट्दर्शनों से वाहिर इसाई और मुसलमान आदि अनेक प्रकार के मत प्रचलित हो रहे हैं। उनके सिद्धान्तोंको भीजानना चाहिए,तथा सूक्ष्म वृद्धिसे अन्वेषण करना चाहिए। अतएव यावन्मात्र परमत के सिद्धान्त हों या उनके सिद्धान्तों की शाखाएं वन गई हों सव का भलीभांति बोध होना चाहिए / षद् दर्शनों के विषय में इसलिए नहीं लिखा गया है. कि-इन दर्शनों की पुस्तके कतिपय भाषाओं में मुद्रित हो चुकी हैं अतएव पाठकगण उन पुस्तको से वा सूयगडाङ्ग-सूत्र, स्याद्वाद मंजरी अादि जैनग्रथों से उक्तदर्शनों के सिद्धांतों का भली भांति बोध कर सकते हैं। इस स्थान पर तो केवल इतना ही विपय है कि प्राचार्य को उक्त मतोंके सिद्धान्तों का भी जानकार होना चाहिए। 33 गांभीर्य-इस गुण में आचार्य की गंभीरता सिद्ध की गई है, क्योंकि जिसमें गांभीर्य गुण होता है. उसी में अन्य गुण भी श्राश्रित होजाते है, चही श्राचार्य अन्य व्यक्तियों की आलोचनादि को सुनने के योग्य होता है वही प्राचार्य अन्य आत्मा की शुद्धि कराने की योग्यता रखता है जो उस प्रायश्चित्ती का दोप सुनकर किसी और के आगे प्रकाश नहीं करता यही उसकी गंभीरता है। कारण कि-जव वह स्वयं गंभीर होगा तभी वह कष्टों को सहन करता हुश्रा अन्य आत्माओं को धर्म पथ मे स्थापन कर सकेगा, और आप भी पवित्र गुणों का श्राश्रयीभूत धन जायगा / अतएव प्राचार्य को द्वैप वुद्धि से किसी का मर्म प्रकाशित न करना चाहिए