________________ ( 116 ) है जैसेकि-संकलित 1 व्यवकलित 2 गुणाकार 3 भागकार 4 वर्ग 5 घन 6 वर्गमूल 7 घनमूल 8 अघसमच्छेदकरणं 9 समच्छेदमीलन 10 भिन्नगुणाकार 11 भिन्नभागकार 12 मिन्नविचार 13 भिन्न धन 14 भिन्नवर्गमूल 15 भिन्नघनमूल 16 इन सूत्रों के द्वारा फिर 7 प्रकार के परिक्रमों का विस्तारकर दृष्टिवा. दांग के प्रथम भेद की समाप्ति कीगई है। दृष्टिवादांग का द्वितीय भेद सूत्ररूप है-इस भेद में सर्वगव्यपर्यायों; नयों वा भंगों के आश्रित होकर 88 सूत्रोंका विस्तार किया गया है // ___ दृष्टिवादांगसूत्र का-पूर्वनामक तृतीय भेद है क्योंकि-जवतीर्थकर देव गणधरादि को दीक्षा प्रदान करते हैं तव वेदीक्षा लेकर विपदी मंत्र के (उत्पात्-व्ययध्रौव्य) पहिले चतुर्दश पूर्वो के ज्ञान का अनुभव करते हैं / इसलिये इनकी पूर्व संज्ञा है ।उन पूर्वो के नाम निम्न प्रकार से वर्णन किये गए हैं / जैसेकि-उत्पात्पूर्व-इस पूर्वमे सर्व द्रव्य और सर्व पर्यायों को अधिकृत्य करके सर्व पदार्थों का वर्णन किया गया है। 1 करोड़ पद. दश वस्तु और चार चूलिका वस्तु इस के अध्ययन विशेष हैं। यदि इस पूर्व को लिखा जाय तो एक हाथी के प्रमाण मषी (स्याही) लगती हैं / यह अनुभवी ज्ञान होता है परन्तु लिखने में नहीं आसक्ता / इसी प्रकार आगे भी जान लेना चाहिए / हाथियों की संख्या आगे दुगणी होती चली जायगी। 2 आत्रायणीयपूर्व--इस पूर्व में सर्व द्रव्य और पर्याय और जीच विशेष सर्व द्रव्यों का सविस्तर वर्णन किया गया है / (अग्र परिमाणं तस्य अयन गमन परिच्छेद इत्यर्थः तस्मै हितं प्राग्रायणीय) अर्थात् सर्व द्रव्यों और पर्यायों का भेद विस्तृत किया हुआ है / इस पूर्व के 96 सहस्र पद हैं, 14 वस्तु और 12 चूलिका वस्तु हैं परन्तु लिखनमें दो हस्तिपरिमाण मषी लग सकती है // 3 वीर्यप्रवाद पूर्व--इस पूर्व में सर्व द्रव्यों के वा सर्व पर्यायों के तथा सर्व जीवों के चीर्य की व्याख्या की गई है और 6 वस्तु तथा 8 ही चूलिकावस्तु है / सप्तति सहस्र (70 हजार ) इसके पदों की संख्या है। स्याही का परिमाण आगे से दुगुणा करते चले जाना चाहिए तथा अंत में सर्व परिमाण दिया जायगा। 4 अस्तिनास्ति प्रवाद पूर्व-इस पूर्व में सर्व द्रव्यों के अस्ति वा नास्ति भावों का वर्णन किया गया है, क्योंकि-सर्व द्रव्य निज गुणों की अपेक्षा तो अस्ति भाव के धारण करने वाले हैं परन्तु पर गुणों की अपेक्षा देखा जाय तो इनमें नास्तिभाव भी ठहर जाता है। अतएव इस पूर्व में अस्तिभाव और नास्तिभाव का सविस्तर कथन किया गया है / 18 वस्तु और दश चूलिकावस्तु इस पूर्व के हैं। 60 लक्ष इसके पदों की संख्या है / 5 ज्ञान प्रवाद पूर्व-इस पूर्व में 5 ज्ञानों की सविस्तर व्याख्या की गई है तथा ज्ञान वा अज्ञान के भेदों का पूर्ण स्वरूप प्रतिपादन किया गया है / 12 वस्तु हैं और एक करोड़ इस पूर्व के पदों की संख्या है