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स्व. पं० गोपालदासजी।
पण्डितजीका जन्म विक्रम संवत् १९२३ के चैत्रमें आगरेमें हुआ था आपके पिताका नाम लक्ष्मणदासजी था । आपकी जाति 'वरैया' और गोत्र 'एछिया ? था । आपके बाल्यकालके विषयमें हम विशेष कुछ नहीं जानते । इतना मालूम है कि आपके पिताकी मृत्यु छुटपनमें ही हो गई थी। अपनी माताकी कृपासे ही आप मिडिलतक हिन्दी और छठी सातवीं कक्षा तक अँगरेजी पढ़ सके थे । धर्मकी ओर आपकी जरा भी रुचि नहीं थी । अँगरेजीके पढ़े लिखे लड़के प्रायः जिस मार्गके पथिक होते हैं आप भी उसीके पथिक थे । खेलनाकूदना, मजा-मौज, तम्बाकू सिगरेट शेर और चौवोला गाना आदि आपके दैनिक कृत्य थे । १९ वर्षकी अवस्थामें आपनें अजमेर में रेलवेके दफ्तरमें पन्द्रह रुपये मही• नेकी नौकरी कर ली। उस समय आपको जैनधर्मसे इतना भी प्रेम नहीं था, कि कमसे कम जिनदर्शन तो प्रतिदिन कर लिया करें । अजमेरमें पं० मोहनलालजी नामके एक जैन विद्वान थे। एक बार उनसे आपका जैनमंदिरमें परिचय हुआ और उनकी संगतिसे आपका चित्त
जैनधर्मकी ओर आकर्षित हुआ और आप जैनग्रन्थोंका स्वध्याय करने • लगे । दो वर्षके वाद आपने रेलवेकी नौकरी छोड़ दी और रायब.हादुर सेठ मूलचन्दजी नेमीचन्दजीके यहाँ इमारत बनवानेके काम "पर २०) रु० मासिककी नौकरी करली । आपकी ईमानदारी और होशयारीसे सेठजी बहुत प्रसन्न रहे । अजमेरमें आप ६-७ वर्षतक रहे । इस बीचमें आपका अध्ययन बराबर होता रहा । संस्कृतका ज्ञान भी आपकों वहीं पर हुआ । वहाँकी जैनपाठशालामें आपने लंघुकौमुदी और जैनेन्द्रव्याकरणका कुंछ अंश और न्यायदीपिका ये 'तीन ग्रंथ पढ़े थे । गोम्मटसारका अध्ययनं भी आपने उसी समय शुरूं कर दिया था। अजमेरके सुप्रसिद्ध पण्डित मथुरादासजी और 'जैन