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अन्तिम तीन लेख कार्तवीर्य ४ के राज्यके सन् १२०१ इनमें राजा द्वारा जिनमन्दिरोके लिए दानोका
दर्शनका वर्णन है । तथा १२०४ के है । वर्णन है ।
प्रस्तावना
शिलाहार वंशके चार लेख मिले हैं (क्र० १९२, २२१, २२२, २५९) । इनमे पहला सन् १९१५ का है तथा इसमें राजा गण्डरादित्यद्वारा उनके जैन सामन्त नोलम्वको दो गांवोंके दानका वर्णन है । अगले दो लेखामें गण्डरादित्यके जैन सामन्त निम्वका वर्णन है । इसने सन् ११३५ मे एक जिनमन्दिरका निर्माण कराया था । अन्तिम लेखमें गण्डरादित्यके जैन सेनापति जिन्नण तथा विजयादित्य के सेनापति कालणका उल्लेख है । कालणने सन् ११६५ में एक मन्दिर बनवाया था ।
काकतीय वंशका एक लेख सन् १९१७ का मिला है (क्र० १९७) । इसमें राजा प्रोलके मन्त्री बेतकी पत्नी द्वारा अन्मकोण्डमे पद्मावती देवीका मन्दिर बनवानेका वर्णन है ।
गुप्त वंशके महामण्डलेश्वर विक्रमादित्यने सन् १९६२ मे पार्श्वनाथमन्दिरके लिए कुछ दान दिया था (क्र० २५७)३
कोगालव वशके शासक वीरकोगात्वने सन् १९१५ के आसपास सत्यवाक्यजिनालय नामक मन्दिर बनवाया था (क्र० १९३) ।
मैसूरके राजा चामराजकी रानी देवीरम्मणिने मेसूरके शान्तिनाथ - मन्दिरमें दीपस्तम्भ तथा कलश दान दिये थे ( क्र ५२४-५२५ ) । इनका
१. पहले सग्रहमें इस वंशके तीन लेख हैं (क्र० २५०, ३२०, ३३४) । २.३. पहले संग्रह में इन दो वंशांका उल्लेस नहीं है ।
8 पहले संग्रहमें इस वंशके छह लेख है जिनमें पहला सन् १०५८ का है (क्र० १८६) ।