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प्रस्तावना
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मन्दिरोकी भूमियोको करमुक्त करनेका वर्णन है, यह लेख सन् १५०९ का है । वराग ग्रामकी मन्दिरको जमीनको खेतीयोग्य बनानेका वर्णन सन् १५१५ के एक लेखमे हैं (क्र० ४५८) । राजा अच्युतदेवने सन् १५३० मे एक जिनमूर्तिको पूजाके लिए कुछ करोकी आय दान दी थी (क्र० ४६७ ) । राजा सदाशिव के समय रामराजने सन् १५४५ में एक जिनमन्दिरको कुछ भूमि दान दो थो ( क्र० ४७३ ) । इमी राजाके समयका एक दानलेख सन् १५५६ का है (क्र० ४७६ ) । राजा रामदेवके समय सन् १६१९ मे एक जैन विद्वान्को कुछ दान दिया गया था ( क्र० ५०३ ) । इस राज्यका अन्तिम लेख सन् १७५७ का है ( क्र० ५२० ) तथा इसमे सदाशिव रायके अधीन शासक भरसप्पोडेय द्वारा चारुकीति पण्डितको कुछ दान दिये जानेका वर्णन है ।
(था १२) दक्षिण भारतके छोटे राजवश- अब हम उन राजवंशोंक उल्लेखोका विवरण देखेंगे जिन्होने राष्ट्रकूट, चालुक्य, होयसल या यादव राज्योमं सामन्तोके रूपमें महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया था । ऐसे वशोमें नोलम्ववग प्रथम है जिसके चार लेख मिले है ( क्र० ५९, ६१, १२३, १३९ ) ।'
इनमें पहले दो लेख राजा महेन्द्र के समयके है । एकमे राजा द्वारा सन् ८७८ मे एक जिनमन्दिरको दान मिलनेका वर्णन है तथा दूसरेमे सन् ८९३ मे आचार्य कनकसेनके लिए कुछ दानका उल्लेख है । नोलब घटेयककारने एक जिनमन्दिरको सन् १०२४ में भूमिदान दिया था ( क्र० १२३) । नोलब ब्रह्माविराजके समय सन् १०५४ में अष्टोपवासी मुनिको कुछ दान मिले थे (क्र० १३९) ।
हुम्मचके सान्तर वगके चार लेख मिले है ( क्र० १३७,२५८,४२२
१ पहले संग्रहमे नोलम्ववादिके कई उल्लेख है किन्तु नोलम्ब राजाओं का कोई लेख नहीं है ।