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जैन शिलालेख संग्रह
१२८५ से १२९७ तक के है । पहले लेखमें सर्वाधिकारी मायदेव द्वारा एक मन्दिरके निर्माणका वर्णन है, दूसरा एक समाधिलेख है, तोसरेमें एक मन्दिरके लिए दानोका वर्णन है तथा चौथेमें महामण्डलेश्वर तिकमदेवके मन्त्रीके पुत्र द्वारा एक मन्दिरके जीर्णोद्धारका उल्लेख है ।
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( आ ११) विजयनगर के राजवंश -- विजयनगर राज्यके कोई २० लेख प्रस्तुत सग्रहमे हैं । इनमें पहला ( क्र० ३९३ ) सन् १३५५ का है तथा हरिहर राजाके समय एक जिनमूर्तिको स्थापनाका इसमें उल्लेख है । बुक्क राजाके समय दो लेख है ( क्र० ३९४, ३९६ ), ये सन् १३५७ तथा १३७६ के है । पहला लेख एक जिनमन्दिरके अवशेपोमें है तथा सेनापति वैचयका इसमें उल्लेख है । दूसरा एक समाधिलेख है । राजा हरिहर २ के सेनापति इरुगने एक जिनमन्दिर बनवाया था ( क्र० ४०३ ) । तथा इस राजाके अधीन गोवाके शासक माधवके सेनापति नेमण्णने पार्श्वनाथमन्दिरको सन् १३९५ में कुछ दान दिया था (क्र० ४०२) । सन् १३९५ के ही एक लेखमें वैचय दण्डनायकके पुत्र इम्मडि वुक्कमन्त्रीश्वर द्वारा एक मन्दिरके निर्माणका वर्णन है ( क्र० ४०४ ) । राजा वृक्क २के समयके दो लेख है ( क्र० ४०६, ४१५ ) इनमें एक शान्तिनाथमन्दिरके निर्माणका स्मारक है तथा दूसरेमें लक्ष्मीसेन भट्टारकके समाधिमरणका उल्लेख है । राजा देवरायके ममयके दो लेख है ( क्र० ४२५, ४३४ ) - पहला सन् १४१२ का है तथा दो मन्दिरोकी सीमाओके बारेमें एक समझौतेका इसमें वर्णन है । दूसरा सन् १४२४ का है तथा इनमें राजा द्वारा नेमिनाथमन्दिरके लिए वराग ग्रामके दानका वर्णन है । राजा मल्लिकार्जुनके समय सन् १४५० में एक मन्दिरको मिले हुए दानोका वर्णन एक लेखमे है ( क्र० ४४० ) । कृष्णदेव महारायके समय के एक लेखमें ( क्र० ४५६ )
१ पहले सग्रहमें इस वशके कई लेख है जिनमें पहला सन् १३५३ का है ( क्र० ५५८ ) ।