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जैनशिलालेस-सग्रह इसमें राजा विनयादित्य-द्वारा अभयचन्द्र पण्डितको दान दिमे जानका वर्णन है। सन् १०६९ के एक लेखम विनयादित्य-द्वारा एक जिनमन्दिरके निर्माणका वर्णन है । ग्रामीण लोग गरीबीके कारण यह कार्य नहीं कर सके थे अत राजाने सहायता देकर यह मन्दिर बनवाया था ( ऋ० १५२ ) ग्यारहवीं सदी अन्तिम चरणके एक लेखमें (क्र० १७५) वर्षमान आचार्यको होयमल राज्यके कार्यकर्ता यह विशेपण दिया है । राजा वल्लाल १ के सेनापति मरियानेने बारहवी सदीके प्रारम्भमें एक मूर्ति स्थापित की थी (क्र. १८३ ) । वारहवी मदी- प्रथम चरणके दो लेखामे राजा विष्णुवर्धनकी रानी चन्तलदेवी तथा उसके बन्धु दुइमल्ल-द्वारा जिनमन्दिरोको दान देनका वर्णन है (क्र. १८८-८९) । इस समयके चार लेसोम (क्र. २००, २०१, २१२, २१३) विष्णुवर्धनके चार सेनापतियोगगराज, उसका पुत्र वोप्प, पुणिसमथ्य तथा मरियानेक धर्मकार्यों का - मन्दिर निर्माण, दान आदिका वर्णन है। राजा नरसिंह १ ने सन् ११५९में एक मन्दिरको कुछ दान दिया था (० २५२ ) तथा समके सेनापति भरतिमय्य एव माचियणने सन् ११४५ तथा ११५३ में इसी प्रकारके दान दिये थे (क्र. २३३, २४६ ) । सन् ११७६ तथा ११९२ के लेखोमें (क्र० २०१, २८२) राजा वीरवल्लाल द्वारा जिनमन्दिरोंको दान देने. का वर्णन है तथा सन् ११७३ एष ११९० के लेखो इमी राजाके अधीन अधिकारियो-द्वारा ऐसे ही दानोका उरलेख है (३० २६८, २८१)। इमी राजाके ममयके तीन दानलेप और है (० २८५, २८९, ३२३) जो सन् १९९९ से १२०० तक के है तथा दो समाधिलेख है (क्र. ३२०. ३२२)। राजा नरसिंह ने मन १२ः५में एक जिनमन्दिरको दान दिया था (क्र. ३४२) तथा उसके अधीन अधिकारियोने सन् १२५७, १२७१ तथा १२८५ में ऐसे ही धर्मकार्य किये थे (३० ३३५, ३४५, ३५१)। एक रूपम राजा रामनाथ-द्वारा पाश्र्वनाथ मन्दिरको दान देनेका वर्णन है (क्र. ३६० ) तथा एक अन्य लेखमै राजा बीरबल्लाल के समय सन्