Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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पुस्तक परिचय.
( २ ) वरडिया डोसी सोनीगरा गेहलडादि को धन वतलाके जैन बनाये जिस्में गेहलडोकों तो दादाजीने ऐसा वास चूर्ण दीया कि एक कुंभारका कजावामें ५००० ईटां पर वास चूर्ण डालनेसे सब सोनाकी इंटा हो गई गेहलडोंने बडी भारी भुल करी अगर एकाद पर्वत पर वह चूर्ण डाल देता तो सब दुनियों जैन बन जाती स्यात इतनी उदारता न होगी !
( ३ ) कुकड चोपडा लोढा जडिया श्राबेट खटोल रूणिवालादिको पुत्र दे जैन बनाया उस जमानामें स्यात् कोई भाग्यहीन ही बांझी रही होगी।
(४) झाबक झांमड बाफणा मोहीवालादिको विजययंत्र दे संग्राममें विजय करवाके जैन बनाये. कमनसिब दिल्लिपति पृथ्वीराज चौहानका कि जिनकों एसा विजययंत्र न मीला जिससे आर्यभूमि म्लेच्छोंके हाथोंमे गई।
(५) चोपडा राखेचा पुंगलीयाका कुष्ट रोग मीटाया । बांठीया शाह हरखावतोंका जलंधर रोग मीटाया । बाबेलादिका रक्तपीती रोग मीटाया। रूणीवालका क्षयरोग मीटाया। डागामालुका आधाशिसी का रोग मीटाया । बागाणी नेत्रोंका रोग मीटाके जैनी बनाया उस जमानामें बिचारा वैद्य हकीम तो घर बैठे हवा खाया करते होंगे।
(६ ) चोग्डीयोंका मुछित रोग मीटाया. भंसालियोंके मृतक पुत्रोंको संजीवन, दूसग भंसालियोंके भूतको निकालके, आर्य गौत्रीको गोलीका फूल तथा जलोपद्रव मीटाके, आधेरियोंको कैद छुडाके, डागा-सुता हुवा बादशाहका पलंग मंगवाके तथा सुवर्णसिद्धि रसायण
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