Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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श्रीरत्नप्रभाकरज्ञानपुष्पमाला पु. नं. ८२
अथ श्री
जैन जाति निर्णय द्वितीयाङ्क.
-* *जैनजातिनिर्णय प्रथमाङ्क में यतिजी रामलालजीकी बनाई — महाजनवंस मुक्तावलि' नामकी किताबमे लिखि जैन जातियोंपर समालोचना कर इतिहासद्वारा कुच्छ निर्णयकर पाठकोकी सेवामें रख दीया था अब इस द्वितीयाङ्कमें यह बताया जावेगा कि कौनसी जाति कीसगच्छके आचार्य प्रतिबोधित है और मूलजातिसे कीतनी कीतनी साखा प्रतिसाखा निकली है ।
भगवान् पार्श्वनाथके संतानियोंकी परम्परा ।
तेवीसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथके प्रथम पाट शुभदत्त गणधर, दूसरे पाट हरिदत्ताचार्य, तीसरे पाट आर्य समुद्राचार्य, चोथे पाट केशी श्रमणाचार्य एवं चार पाट तक तो निग्रन्थगच्छ कहलाता था. पांचवे पाट स्वयंप्रभसूरि हुवा. श्राप विद्याधर-अनेक विद्याओंके पारगामि होनेसे निग्रन्थ गच्छका नाम विद्याधर गच्छ हुवा. आपने श्रीमालनगर (हालका भीनमाल ) में ९०००० घरोंको प्रतिबोध दे जैन श्रीमाल ( श्रीमाली ) तथा पद्मावती नगरीमें ४५००० घरोंको
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