Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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(८) जैनधर्मोपासक दानवीरों की तरफ से अनेक भयंकर दुष्कालों में उदारतापूर्वक खोली हुइ दानशालाओं, पशुपालन, गौरक्षक संस्थाओं का वर्णन |
(A) जैनधर्मोपासकों को राजा-महाराजा, बादशाहों की तरफ समीला हुआ पदाधिकार- जगतशेठ, नगरशेठ, कमलापति, शाहादि शेठजी बोहराजी आदि का वर्णन ।
(१०) जैनधर्मोपासकोंके राजा-महाराजा, जागीरदार और कीसान लोग जिन के करजदार रहते है उन्हों को " बोहरों" की पद्वि मीली थी ।
(११) जैनाचार्योने अपना मंत्रबल, विद्याबल, ज्ञानबल द्वारा जनता का कीया हुवा कल्याण का वर्णन |
(१३) जैनधर्मोपासकोंने जनता का कल्याण के लिये क्रोडों द्रव्य खरच कर बडे बडे तीर्थों पर ग्राम-नागरादिक में बन्धाये हुवे भव्य जिनालयों का वर्णन |
(१४) जैनधर्मोपासकोंने -- क्रोडों रुपये खरच कर अनेकवार तीर्थयात्रा निमित्त निकाले हुवे संघ जिस में अन्यधर्मीयों की सहानुभूति का वर्णन |
(१५) जैनधर्मोपासकोने जनता के आरामी के लिये क्रोडो द्रव्य खरच कर बनाये हुवे तलाव, कुआ, वावडीयां, मठ, धर्मशाला आदि का वर्णन |
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