Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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पार्श्वनाथ के ७ गच्छ.
जैन पोरवाड बनाया था. छठ्ठे पाट रत्नप्रभसूरि उपकेशपट्टन ( हालकि ओशीयों) में ३८४००० घरोंको जैन महाजन (ओस वाल ) बनाया तबसे विद्याधर गच्छका नाम उपकेश गच्छ हुवा आपके शासन में कनकप्रभसूरि से कोरंट नगरमें कोरंट गच्छकी स्थापना हुई जब से पार्श्वनाथ संत नियोंकी दो साखाएं हो गई एक उपकेशगच्छ दूसरा कोरंटगच्छ, बाद उपकेशगच्छ से द्विवन्दनिकगच्छ ओसवालगच्छकी उत्पत्ति हुई तथा उपकेशगच्छको कमलाका विरूद भी मीला ।
( ७२ )
निग्रन्थगच्छ विद्याधरगच्छ उपकेशगच्छ कोरंटगच्छ द्विन्दनीकगच्छ ओसवालगच्छ और कमलागच्छ एवं पार्श्वनाथ संतानिया सातनामोंसे विख्यात हुवे ।
श्रीमाल पोरवाडोंकी साखा प्रतिसाखा उनके सुकृतकार्यो व वंसावलियों कोरंटगच्छवालोंके पास थी कोरंटगच्छवालोका एक बडा भारी ज्ञानभंडार कोरंट नगरमें था वहां के महाजनोंसे दरियाफ्त करनेसे ज्ञात हुवाकि कीतनाक तो मुसलमानोंका अत्याचारों से वह भंडार नष्ट हो गया शेष रहा हुवा गृहस्थ लोगों के हाथमें रहा उसका संरक्षण पुरण तौर से न होने से कीतनाक नष्ट हो गया फिर भी रहा हुवा भंडार श्री राजेन्द्रसूरिके हाथ लगा. और वि. सं. १९१० में कोरंटगच्छीय श्रीपूज्य वीकानेरे आये जब कतिनिक पुस्तकों लाये थे. वह कमलागच्छीय श्रीपूज्यजीको दीथी जिसमे एक वहि सावलियोंकी थी वह वि. सं. १९७४ में यतिव माणक सुन्दरजी द्वारा मुझे जोधपुर में मीली जिसमे कोरंटगच्छा
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