Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 84
________________ कमलागच्छ. ( ७६ ) (१६) मूलगोत्र डिडू-डिडू राजोत् सोसलाणि धापा धीरोत् खंडिया योद्धा भाटिया भंडारी समदरिया सिंधुडा लालन कोचर दाखा भीमावत् पालणिया सिखरिया. वांका वडवडा बाद. लीया कानूंगा. एवं २१ साखाओं. डिडूगोत्रसे निकली वह सब भाई है। (१७) मूलगोत्र कनोजिया-कन्नोजिया वडभटा राकावाल तोलीया धाधलिया, घेवरीया, गुंगलेचा, करवा, गढवाणि, करेलीया, राडा, मीठा, भोपावत् , जालोरा, जमघोटा, पटवा, मुशलीया एवं १७ साखानो कनोजिया गोत्रसे निकली यह सब भाई है। (१८) मूलगोत्र लघुश्रेष्टि-लघुश्रेष्टि, वर्धमान, भोभलीया लुणेचा, बोहरा, पटवा, सिंधी, चिंत्तोडा खजानची, पुनोत्गोधरा, हाडा, कुबडिया, लुणा, नालेरीया, गोरेचा, एवं १६ सा. खाओ लघुश्रेष्टिगोत्रसे निकली वह सब भाई है। २२-५२-१४-२६-१७-१८-१७-२२-३०-४४८५-२०-२६-१६-१६-२१-१७-१६ कुल संख्या ४६८ मूल अठारा गोत्रकी ४९८ साखाओ हुई इसपर पाठकवर्ग विचार करसक्ते है कि एक समय ओसवालोंका कैसा उदय था और कैसे बड़वृक्षकी माफीक वंसवृद्धि हुई थी इति ओशीयों नगरीमे बनाये हुवे १८ गौत्र ससाखाओं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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