Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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कर्मचंद.
(20) कीया उसका मतलब यह था कि कर्मचंद मरणेकी तय्या में है में मेरा बदला ले नहीं सका । कर्मचंद मरते समय अपने पुत्रों को यह शिक्षादी की वीकानेर राजा तुमको कीतनाही लालचा देवे तो भी तुम बीकानेर नहीं जाना. कर्मचंद दिल्लिमें काल कर गया. राजा रायसिंहजीभी वि. सं. १६६८ मे काल करते समय अपने छोटा पुत्र शूरसिंहसे कहा कि कर्मचंदका बदला मेरा हृदयमें खटक रहा है वास्ते उनके पुत्रोंसे तुम बलला जरुर लेना इत्यादि. अगर यह इतिहास सत्य है तो महात्मा या यतियों का लिखना है कि कर्मचंद वछावतने वंसावलिये कुवामें डाल दी और बीकानेर राजाने कर्मचंदको इस अत्याचार के बदलेमें मारा और बछावतोंका सर्वनाश कीया यह बिलकुल मिथ्या है। कारण कर्मचंदका मृत्यु हुवा दिल्लिमें और राजा रायसिंहका मृत्यु हुवा बुरानपुरमें । . कीतनेक श्रीपूज्योंने अन्यगच्छीय श्रावकों पर अपनी छापमार अपने दफतरोंमें उनको अपने गच्छके लिखनेकीभी साबुती मिलती है जिसका कारण.
(१) जिस देश जिस प्रान्त में जीस आचार्योका विहार हुवा वहांके अन्यगच्छीय श्रावकों को अपनी क्रिया करवाके अपने दफतरोमे उनका नाम लिख अपने गच्छकी छाप ठोकदी.
(२) अन्य गच्छीय श्रावके को माला मंत्र यंत्र बतलाके अपनि छाप मार दी कि यह श्रावक हमारे गच्छ के है ।
(३) अन्य गच्छीय श्रावक कीसी श्रीपूज्योंसे प्रतिष्टा कर
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