Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 83
________________ कमलागच्छ. (७५) (१२) मूलगौत्र भूरि-भूरि, भटेवरा, उडक, सिंधि, चोधरी, हिरणा, मच्छा, बोकड़िया, बलोटा, बोसूदीया. पीतलीया, सिंहावत् , जालोत् , दोसाखा, लाडवा, हलदीया, नाचाणि, मुरदा, कोटारी, पाटोतीया एवं २० साखाओं भूरि गौत्रसे निकली वह सब भाई है। (१३) मूलगौत्र भद्र-भद्र, समदडिया, हिंगड, जोगड, लिंगा, खपाटीया, चवहरा, बालडा, नामाणि भमराणि, देलडिया, संघी, सादावत् , भांडावत् , चतुर, कोटारी, लघु समदडिया, लघु हिंगड, सांढा, चोधरी, भाटी, सुरपुरीया, पाटणिया, नांनेचा, गोगड, कुलधरा, रामाणि, नथावत्, फूलगरा एवं २६ साखाओं भद्रगोत्रसे निकली वह सब भाई है । (१४) मूलगौत्र चिंचट-चिंचट, देसरडा, संघवी, ठाकुरा, गोसलांणि खीमसरा, लघुचिंचट, पाचोरा, पुर्विया, निसांणिया, नौपोला, कोठारी, तारावाल, लाडलखा, शाहा, आकतरा, पोसालिया, पूजारा, वनावत् , एवं १६ साखाओं चिंचटगोत्रसे निकली वह सब भाई है। (१५) मूत्रगौत्र कुमट-कुमट काजलीया. धनंतरि. सुंघा जगावत् संधवी पुगलिया कठोरीया कापुरीत संभरिया चोक्खा सोनीगरा लाहोरा लाखाणी मरवाणि मोरचीया. छालीया मालोत् लघुकुंमट नागोरी एवं १९ साखाओं कुंमटगोत्रसे नीकली यह सब भाई है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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