Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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कमलागच्छ.
(७१) चार्यो प्रतिबोधित ओसवालोंकी वंसावलियों थी जिस्के नाम यहां पर दीया जाते है।
आचार्य श्री रत्नप्रभसूरि वीर संवत् ७० विक्रम संवत् के ४०० वर्ष पहला श्रोशीयो नगरीमें ब्राह्मण, क्षत्री और वैश्यों के ३८४००० घरोंको प्रतिबोध दे महाजन संघकी स्थापना करी जिनका अलग अलग १८ गौत्र स्थापन कीया फिर बादमें कीतनेक तो पूर्वजोंके नामसे, कीतनेक व्यापार करनेसे, कीतनेक प्रामोंके नामसे कीतनेक धर्मकार्योमे नाम्बरी करनेसे एकेक मूल गौत्रसे अलग अलग अनेक जातियोके नामसे मशहूर हुई उनोकी वंसावलियोंसे हमे जीतना पत्ता मीला है वह यहां पर लिख देते है ।
(१) मूलगौत्र तातेड़-तातेड़, तोडियाणि, चौमोला, कौसीया, धावडा, चैनावत् , तलवाडा, नरवरा, संघवी, डुंगरीया, चोधरी, रावत, मालावत, सुरती, जोखेला, पांचावत, विनायका, साढेरावा, नागडा, पाका, हरसोत, केलाणी, एवं २२ जातियों तातेड़ोंसे निकली यह सब भाई है ।
(२) मूलगौत्र बाफणा-बाफणा, (बहुफूणा) नहटा, ( नाहाटा नावटा ) भोपाला, भूतिया, माभू, नावसरा, मुंगडिया, डागरेचा, चमकीया, चोधरी, जांघडा, कोटेचा, बाला, धातुरिया, तिहुयणा, कुरा, बेताला, सलगणा, बुचाणि, सापलिया, तोसटीया, गान्धी, कोटारी, खोखरा, पटवा, दफतरी, गोडावत, कूचेरीया,
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