Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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सु० गे० बोत्थरा.
(४९) जैन क्यों नहीं बना लिया की आज जतियोंके पात्रोंमे रोटीया और पीच्छोवडियोंका ढींग हो जाता । दर असल आघेरिया जाति कीस गच्छोपासक है वह निर्णय होने पर दूसरा अंकमें लिखा जावेगा। (२०) सुघड दुघड.
यतिजीने अपनी मुक्तावलिमें लिखा हैं कि रत्नप्रभसूरि ओशीयोमें १८ गौत्र स्थापन करनेके बाद चंडालीया सुघडादि गौत्र स्थापन कीया था. परं आपको परस्पर विरूद्धता की परवाही क्या है ? आपको तो कीसी भी युक्तियों द्वारा सब ओसवालोंको खरतर बनाके पीछोवडी रोटी लेणी हैं दर असल दुघड नागोरी तपागच्छ
और सुघड उपकेश गच्छके श्रावक है उत्पति के लीये वंसावलि देखो " जैन जाति महोदय" कीताब. (२१) गंग दुधेडियों.
__ इनके बारामें भी यतिजीने एक यंत्र रचा है परं बंब गंग गांग दुधेरीया जातियों कंदरस ( मलधार ) गच्छाचार्य प्रतिबोधित है उन जातियों की वंसावलीयों भाज पर्यन्त मलधार-कंदरस गच्छवाले ही लिखते आये हैं। ( २२) बोथरा बच्छावत मुकीम फोफलीया.
4. लि. जालौर का राजा सावंतसिंह देवडा के दो राणीयां थी एक का पुत्र सागर दूसरी का वीरमदे. जालौर का राज वीरमदे को आया तब सागर अपनि माता को साथ ले आबुपर अपना नाना पंवार राजा भीम के पास चला गया. राजा भीम के पुत्र न होनेसे आबु का राज सागरको देदीया तब सागर आबुके १४० ग्रामोंका राज करने लगा. उस समय चितोड का राणा रत्नसिंह पर मालवा का बादशाहा फोज ले आया. तब रांणा सागरको बुलाया. सागर चितोड जा बादशाहा के साथ संग्राम कर बादशाहा को भगा दीया और मालवा अपने आधिन करलीया । बाद गुजरातका बादशाहने सागर पर हुकम भेजा कि तुम हमारी आज्ञापालन करो नहीं तो तुमारा माला
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