Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 56
________________ (४८) आधेरीआ. पद्वि दे करज लीया यतिजीको इतना तो सोचना था की इस प्रकाशके जमानामें एसी अघटित गप्पोंको साक्षर कैसे मानेगें । दर असल पाटणका इतिहासमें लिखा है की जगदेव पँवार एक वीर था सिद्धराजके मृत्युके बाद पाटण छोड अपने मोशाल कल्याणकटकका राजा प्रमार्दिके वहां चला गया था. यह ही वात सरोिहीके इतिहासमें पं० गौरीशंकरजी ओमाने लिखी है वास्ते यतियोंका लिखना विलकुल निर्मूल है आगे सुरांणा सांखलोके साथ सांढ सीयाल सालेचोंका भाईया जोड दीया यह भी गलत है सुरांणा सांखला तो सुराणां गच्छका है सांढ सीयाल पूनमिया गच्छका और सालेचा उपकेश गच्छ प्रतिबोधित है आगे कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्राचार्यको मलधारी खरतर लिख मारा है एक पापी पेटके लिये यतियोंको कीतना प्रपंच झाल रचना पड़ा है अगर भगवान् महावीरका ही यतिजी खरतर गव्छ लिख देते तो महावीरके माननेवाले सब जैन खरतर गच्छके ही हो जाते। तब तो जतिजीके पात्रोंमे रोटीयों, पेटीयोंमें पीछोवाडीयों मानी भी मुश्किल हो जाती. ( १९ ) आधेरिया जाति. इस ख्यांतमें जो आर्यगोत्रका प्रादि पुरुष राव गौसल भाटी था प्रायरिया के बदले आधेरिया जातिका आदि पुरूष भाटी गौसलको लिख यह ढंचाखडा कीया है. अगर विक्रम की तरहवी शताब्दीमे दादाजी लोकोको कैदसे छुडा देते थे तो उस समय हजारो मन्दिर और लाखो प्रन्थ म्लेच्छेने नष्ट कर दीया था तथा पवित्र आर्य भूमि म्ले. च्छोके हुमलोंसे महान दु:खी हो रही थी उस दुःखसे मुक्त कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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