Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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बोत्थरा. छीन लुगा ? इसको सागर स्वीकार न करने पर बादशाहा सागरपर चढ आया सागर ने संग्रामकर गुजरात भी छीन ली. अर्थात् प्राबु, मालवा, गुजरात, इन तीनों पर सागरका राज होगया-+ + बाद चितोड पर दिल्लिका बादशाहा गोरिशाहा चढ आया राणाने फिर सागरको बुलाया सागर आपसमें समझोता करवा कर बादशाहासे आप २२ लाख रूपये दंडका ले मालवा गुजरात पीच्छा दे दीया. + + चितोडका राणो रत्नसिंह सागरको अपना सुख्य मंत्रि बनाया बाद सागर अाबु प्राया सागर के तीनपुत्र (१) वोहित्य (२) गंगदास (३) जयसिंह जिस्में सागर के पीछे आबु का राज बोहित्य को दीया + x वि. स. ११९७ में जिनदत्तसूरि प्राबुपर पधारे राजा बोहित्थको उपदेश दीया. राजाने कहा कि में जैन बन जाउं तो राज व शस्त्रका त्यागकर व्यापार करना पडे इत्यादि फिर सूरिजीने समझाया कि हे राजन् ! विचार कर देखो चक्रवर्ति के पास कोई समय पंचाश्वभी नहीं मीलता है राजपाट सब कारमा हे वास्ते तुम हमारा श्रावक बनो भविष्यमें तुमारा कल्याण होगा इत्यादि उपदेश के प्रभावसे बोहित्य के आठ पुत्रोमेसे एक श्रीकर्ण को तो राजाके लिये छोड दीया बाकी सात पुत्रों के साथ राजा जैन बन गया. उसकी जाति बोत्थरा स्थापन करी +++ सूरिजीने आशीर्वाद दीया कि तुम खरतरगच्छको मानोगा तब तक तुमारा उदय होता रहेगा.
समालोचना-बोत्थरों कि ख्यात लिखते समय न जाने यतिजी नशामे चक चुरथे या बाल बच्चोंको खेला रहे थे साधारण मनुष्यभी लेख लिखते समय लेखकी सत्यता के लिये प्रमाण की तरफ अवश्य ध्यान देता है पर हमारे यतिजी बडी बडी उपाधियों का वजन सिर पर उठाते हुवे बालक जीतनाभी ख्याल नहीं रखा कि मेरा लेख कोइ विद्वान् पढेगा तो मेरी उपाधियोंकी कितनी किंमत करेगा । अस्तु. अव्वल तो सावंतसिंह और सागरका समय यतिजीने नही लिखा परं राणा बोहित्थ को दादाजीने वि. स. ११६७ में जैन बोत्थरा बनाया इसपरसे सांवत देवडाका समय ११४७ और ' सागर का समय ११७२ के आसपास स्थिर होसक्ता है । सबसे
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