Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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( ६२ )
ढा श्रीपति
सभा० डागा कीस गच्छके है ? इसका निर्णय के लिये इस समय मेरे पास इतनी सामग्री नहीं है पर यतिजी का ढांचा तो बिलकुल विगर पैरों का है कारण वि. स. १३६६ नाडोल में मुसलमानों का राज हो चुका था तब कुशलसूर का समय १३७७ का है जब उस समय नाडोल में मुसलमानों का राज हो गया फिर एक डुगजीके लिये फोज भेजनेकी क्या आवश्यकता थी चारणलोक डुगजी गीत गाया करते है पर डुगजी जैन हो गया की साबुती कहां भी नहीं मीलती हैं अगर दादाजी सुता हुवा बादशाहाका पलंग मंगवा लिया होता तो हजारो मन्दिर और लाखो ग्रन्थ मुसलमानोंने उस समय नष्ट कर दीया था उसे क्यों नहीं बचाया ? क्या डुगजीको जैन बनाने जीतना भी लाभ उसमें नहीं था ? विद्वान तो कहते है कि यतिजीने श्राचार्यों की तारीफ नहीं किन्तु एक कीस्मकी हांसी करवाई है। (३१) ढठ्ठा श्रीपति और तिलेरा जाति
वा०लि० वि. स. ११०१ गोडवाड नाणा बेहडामे ( पाटण ) का सोलंकी सिद्धराज जयसिंह का पुत्र गोविन्दको खरतराचार्य जिनेश्वरसूरि प्रतिबोध दे जैन बनाया इसपर वडा आडम्बर के साथ महेल रचा हुवा है अन्तमें बीकानेर जयपुर के ढक्को की सावलि जोड दी है संघ निकलनादि वडे वडे कार्य कीया लिख ढढेको खुश कर दीया पर उसमें सत्यता कीतनी है इसपर पाठकवर्ग ध्यान दे ।
समा० यतिजी के ऐतिहासिक ग्रन्थ की कहां तक तारीफ की जाय ! ऐसे प्रमणों का ग्रन्थ स्यात् कीसी विद्वानों के देखने में आया होगा मुझे तो यह प्रथम ही अवसर मीला है । अव्वल तो ११०१ मे सिद्धराज जयसिंह का जन्म ही नहीं था, जब पुत्र होना तो सर्वथा
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