Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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( ३३ ) गोडबत छजलांणी छलाणी
इन जातियों के बारामे भी वारिधिजीने पूर्वोक्त युक्ति रच खरतर होना लिखा है पर यह भी जातियां नागपुरिया तपागच्छोपासक है इनकी सरूमे वंसावलियों मेरे पास मे भी है और तपागच्छ महात्मा खराडि बलुंदावाले लिखा करते है । इन जातियों का गच्छ तपा हैं ।
श्रीश्रीमाल, पोकरण .
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( ३४ ) कटोतीयों को सांप कटाया ( ३५ ) भुतेडीयोंमें वाममार्गियों की युक्तिरची पर इसका निर्णय के लिये हमारे पास इस समय इतनी सामग्री नहीं है कारण इसके इतिहास विषय कम है ( ३६ ) जाडिया नागपुरिया तपागच्छके श्रावक है ईसकी सावलि इस समय हमारे पास मोजुद है यतिजी की युक्ति बिलकुल गलत है ।
( ३७ ) कांकरीयों के वारामे वारधिजी लि० भीमसी को दादाजीने दो कांकरा दीया जिनसे संग्राममे चितोड को राणो पराजय हो भाग गयो इत्यादि ।
समा० यह बिलकुल गलत है अगर एसा होता तो दो कांकरा मुसलमानोंके हुमलों की बख्त हिंदूवों को मील जाता तो श्रार्य देश
म्लेच्छों का गुलाम क्यों बनता ? दरअसल कांकरीयौका गच्छ कमला
है । कांकरीया स्वतंत्र जाति नहीं पर श्री रत्नप्रभसूरि प्रतिबोधित चरडा गौत्रकी एक साखा हैं । खरतरगच्छ के जन्म पहिले हजारों कांकरीयोंने अनेक सुकृत कार्य कीया है देखो " जैन जाति महोदय
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(३८) श्रीश्रीमालजाति
इनके बारामे तो यतिजी बेहोश हो के एक म्लेच्छ बादशाहा का मुह से हिन्दुधर्म और ब्राह्मणो की वडी भारी निंदा करवाई है सत्यतो यह है कि वीरात ७० वर्षे रत्नप्रभसूरि ओशियोमे १८ गोत्रोमे ८ वांगौल श्रीश्रीमाल स्थापन कीया था देखो जैनजाति महोदय ।
( ३९ ) पोकरणा -
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इनके बारामें बा० लि० एक विध्वा ओरत पुष्करमें स्नान कर रही थी उसे
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