Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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नाहार-छाजेड.
( ५९ )
उसके पाससे पुत्र दीराया जैन बना उसकी नाह र जाति स्थापन करी इत्यादि
गच्छ खरतर ।
समा० यह ख्यात यतिजी भाटों से लिखी मालुम होती है भाट सुडाजीका नाम लेते है तब यतिजी मानदेवसूरिका नामाधिक लिखा है पर मानदेवसूरि खरतर पट्टावलिमें नहीं है अगर है तो कोनसा समय में हुवा वह नहीं लिखा, साधुप्रो में सुडाजी नाम होना भी प्रसंभव है दरअसल वि. स. १०२९ में प्राचार्य सर्वदेवसूनि मुगी पाटन आये वहां का राठोड केहर का नूतन पुलको एक नाहारडी पूर्व जन्म का स्नेह से ले गई थी केहरने सूरिजी से अर्ज करनेपर नाहारडी को उपदेश दे पुत्र दीगया केहरको जैन बना नाहार गोत्र स्थापन कीया इस ख्यातका विस्तार बहुत है नाहारों का गच्छ तपा है । इनकी वंसावलियों नागोरी तपागच्छके महात्मा लिखते है । ( २७ ) छानेड -
इनके बारामे वा०लि० धांधल साखा के राठोड रामदेवका पुत्र काजलकों वि. स. १२१५ में जिनचन्द्रसूरिने शिवाणा मे वास चूर्ण दीया उसने अपने मकान का छाजोपर देवी के मन्दिर के छाजोपर और जिनमन्दिर के छाजोपर वह चूर्ण डाला की सब छाजा सोना का हो गया वास्ते छाजड कहलाया.
समा० अव्वलतो बि. स. १२९५ में राठोडोमें धांधल साखा ही नहीं थी कारण विक्रमकी चौदहवी शताब्दी में राव श्रासस्थानजी के पुत्र धांधल राठोडोमें धांधल साखा हुई थी यतिजी को सत्यासत्यकी परवा ही क्या ? उनको तो कीसी न कीसी युक्तिद्वारा सब
सवालों को खतरा बना पैसा पीच्छोडी व रोटी लेनी है काजल की कीतनी भूल हुई अगर सम्पूर्ण मन्दिरपर वह चूर्ण डाल देता तो
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