Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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लोढा.
( ५८ )
(२४) लोढा जाति
इनके बारामें भी यतिजीने अपनी युक्तियोंका ठीक प्रयोग कीया हैं परं इसकी समालोचना करनेकी भावश्यता नहीं हैं कारण नागोर जोधपुर अजमेरादिके लोढे नागपुरीय तपागल हैं लोढोंकी वंसावलियों भी तपागच्छके महात्मा लिखते हैं कोई कोई ग्रामडोंमें अज्ञात लोढा खरतरगच्छकी क्रिया भी करते हैं पर लोढों का गच्छ तपा हैं }
(२५) बुरड -
आबुगढ के पँवार राजा बुरडको वि. स. ११७५ मे दादाजीने शिवजी का प्रत्यक्ष दर्शन कराया. शिवजीने राजा से कहा कि हे राजन् तु मेरे से मोक्ष चाहता है परं बी तो मेरी भी मोक्ष नहीं हुई है अगर तँ मोक्ष ही चाहता है तो दादाजी को गुरू कर ले इत्यादि** राजा बुरड को प्रतिबोध दे जैन बनाया.
समा० यतिजी ! क्या आपको विश्वास है कि इस सुधारे हुए जमाने में दुनिया ईस गप्पों को मान लेगी ? शिवजी प्रत्यक्ष रूपमें हो राजा को कह दिया कि तु मोक्ष चाहता हो तो दादाजी को गुरु कर ले और आप शीवजीदादाजीको गुरु कीया ही नही आपका डेग योनीमे या स्मशानमे ही रखा, दरअसल आबु पर कोई बुरड राजा ही नहीं हुवा "बोत्थरोंकी समा० में देखो श्राबुराजा की वंसावलि " न बुरड पँवारो से बना है बुग्ड पडिहार राजपुत्तों से बना है तपागच्छके श्राचायने प्रतिबोध दे जैन बनाया है लगनमलजी बुरड के पास बुडो का खुश नामा तय्यार है बुग्डो का गच्छ तपा है । (२६) नाहार -
इन जातिके बारामे वा ० लि० मुदीयाड ग्राममें मेसरी देपाल का पुत्र को कोइ ले गया वहां पर मानदेवसूरि एक शिष्य सुडाजी के साथ आया देपालसूरिजीके पास जाके अर्ज की जैन धर्म की शर्तपर सुडाजी एक देवी सिंहणी का रूपमें थी
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