Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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बोत्थरा.:
( ५१ )
पहला तो हमे यह देखना है कि वि सं. ११४७ के आसपास जालौर पर सावंत देवडाका राज था या नहीं ? ईसका प्रमाण के लिये जालौर का तोपखानामें एक सिलालेख खुदा हुवा है वह वि० ११७४ राजा विशलदेव पंवार का समय का है जिसमें जालौर के राजाओं की सावलि है तथा प्राबु चित्तोडकी भी वंसावली यहां देदी जाती है।
जालौर के पंवार राजा
चंद्रण
देवराज
अप्राजित
विजल
धारावर्ष
विशलदेव (१९७४) कुंतपाल (१२३६) यशेोधवल
gh पँवारोंका राज
धुंधक
(१०७८)
पूर्णपाल (११०२)
कान्हडदेव (११२३)
ध्रुवभट
रामदेव
विक्रम (१२०१)
इन सावलियों से यह सिद्ध होता हैं कि नतो उस समय जालौर कि गादीपर सावंत देवडा हुवा न बुकी गादीपर भीमपँवार तथा सागर या बोहिथ्थ हुवा न चितोडकी गाड़ीपर राणा रत्नसिंह हुवा । श्रागे मालवा, गुजरात, और दिल्लिपर १९७२ में बादशाहाका राज होना यतिजी लिखते हैं वह भी बिलकुल गलत है कारण दिल्लिपर १२४६ तक हिन्दु सम्राट पृथ्वीराज चौहान का राज था गुजरातमे १३५६ तक वाघेला राजा करण का राज, मालवा में १३५६ तक पँवार जयसिंह का राज था बाद में बादशाही हुइ थी तब सागर का समय
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चितोड के राणा वैरिसिंह (११४३
विजयसिंह ११६४
अरिसिंह
चौडसिंह
विक्रमसिंह
रसिंह
खेतसिंह
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