Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 55
________________ सुरांणा-सांखला. (४७) अगर मेरी सोधखोलमे पत्ता मीलेगा तो दूसरा अंकमें प्रकाशित करवा दीया जायगा । परं यतियोंका लेख विश्वास करने योग्य नहीं है ( १७ ) डोसी सोनीगरा। विक्रमपुरका सोनीगरा हरिसेनके पुत्र नहीं. जब क्षेत्रपालको एक लक्ष सोनइयों की वोलवा करी x पुत्र हुवा परघरमें इतना धन नहीं. वास्ते बोलवा न चडानेसे क्षेत्रपाल अनेक कष्ट देने लगा. वि० स० ११२७ दादाजीने दुःख मीटाके जैन बनाया. समालोचना-अव्वलतो ११६७ में सोनीगरा था ही नहीं सोनीगरा १२३६ के बाद हुवा है दूसरा घरमें ही लाक्ष सोनइया नहीं था तब बोलवा करना कैसे सिद्ध होता है ? दादाजीको तकलीफ देनाकी निष्पत् लाख सोनईयोंकी बोलवासे प्राप्त हुवा पुत्र ही क्षेत्रपाल को सुप्रत कर देता तो क्षेत्रपालका अधिक जोर ही क्या था. दर असल डोसी गोत्र अंचलगच्छाचार्यके प्रतिबोधित है । देखो " जैनगोत्र संग्रह " डोसीयोका आंचलगच्छ है । (१८) सुरांणा सांखळा सांढ सियाल सालेचा। वि. स. ११७५ में पादृणका सिद्धराज जयसिंहका पलंग के पहारादार जगदेव पँवार था. जिसकी नोकरी एक वर्षका एक क्रोड सोनईया था. इस ख्यातमे यतिजीने जगदेव पँवारकी कथा कीसी भाटोंसे सुनी थी वह घसीट मारी है ++ जगदेवपँवारको दादाजी प्रतिबोध दे जैन सुरांणादि बनाया । ___ समालोचना-इतिहास इस वातको मंजुर नहीं करता है कि सिद्धराज जयसिंह एक वर्षका एक क्रोड सोनइया जगदेवको देता था. रांकोकी ख्यातमें तो यतिजी लिखा है की राजाको ५६ लक्ष सोनइया कीसीने करज नहीं दीया तब पालीका रांकोको सेठ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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