Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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झामऊ झाबक गौत्र. पह धारानगरीका राजा भोजके सरणे चला गया था स्यात् यतिजीने उसकी कथा सुन धाडायति के नाम पर धाड़ीवालोंकी ख्यात लिख मारी है पर कहां तो डिडु धाडायतीका समय और कहां जिनवल्लभसूरिका समय डिडुके समय जिनवल्लभसूरिका जन्मभी नहीं था. अर्थात् १०० वर्ष का अन्तर है धाडिवाल जाति कोरॅटगच्छाचार्य प्रतिबोधित है देखो " जैन जाति महोदय"
(५) झाबक झामर झंषक जाति
श्रीपालजीने अपनी कीताबमें इन जातियोंको खरतर होना नहीं लिखा जब रामलालजी लिखते है कि भबमा नगरमें राठोड झाबदे राजा चार पुत्रोंके साथ राज करता था वहांपर वि. स. १५७५ में जिनभद्रसूरि आये राजाने भक्ति करी कारण राव सीहाजी आसस्थानजीनेभी जिनदत्तसूरिकी भक्ति करीथी दादाजीने उनका भविष्यभी बतलायाथा. प्रस्तु। यहां झाबदे राजापर दिल्लिके बादशाहाका हुकम पाया कि टाटिया भील मेरा हुकम नहीं मानता है वास्ते तुम उसे पकड लावेंगे तो तुमे ईनाम दीया जावेगा, राजा सूरिजीके पास आया सूरिजीने राजाकी अर्ज सुन एक यंत्र कर दीया राजाने यंत्रको झंघा चीर अन्दर घुसा दीया यंत्रके प्रभावसे भीलको पकड बादशाहके पास भेज दीया बादशाहसे ईनाम पाया. राजा एक पुत्रको तो राजके लिये छोड दीया बाकी तीन पुत्रोंके साथ जैनी बन गया तीन पुत्रोंके नामसे झामड झाबक मंबक एवं तीन जातियों स्थापन करी.
समालोचना-अव्वलतो वि. सं. १५७५ में मबा नगरही नहीं था इतिहास कहता है कि इ. स. १६ वीं शताब्दीमें लाभाना जातिके झबु नायकने झबश्रा बसाया था बाद वि. स. १६६४ मे बादशाहा जहाँगीरने राठोड केशवदासको झवा इनाममे दीया था जब १६६४ में राठोडौँका राज झबश्रामें हुवा तब १५७५ में
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