Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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शंकावाका.
पाली में काकु पातक सामान्यस्थितिवाले दो भाई वसते थे पालीका जेसल श्रेष्टने शत्रुंजयका संघ निकाला काकु पातकभी उस संघके साथ यात्रा कर वापीस वल्लभीमें आये उस समय वल्लभी में अन्तिम शीलादित्य राजाका राज था और नगरी वैपारसे उन्नत थी वास्ते केई स्वधर्मिभाइयों की सहायता पाके काकुपातक वहां वैपार करने लग गये सामान्य स्थिति होने से लोक काकुको रांक - रांक करने लग
ये पर दे लेखका व्यवहार पातकका अच्छा होनेसे पातकको बांका - वांका कहने लग गये. वैपारसे रांका वांका वडे ही धनाय हो गये काकुने अपनी पुत्री के लिये एक बहुमूल्य कांगसी बनाई थी राजपुत्री उसे देख कांगसी मांगी काकु पुत्रीने कांगसी नहीं दी तब राजाने बलात्कारपूर्वक छीन ली । इसपर काकु पातक अर्थात in air सिन्धकी तरफ से अरबी लोगोंको एक क्रोड सोनमोहोरो दे वल्लभीका भंग करवाया यह ही वात काठीयावाड और गुजरातका इतिहास में लिखी है वल्लभीका भंग इ. स. ७६६ वि. स. ८२२ में हुवा था इसके आसपास ही ' बलाहा गौत्र वालोंका नाम रांका वांका हुवा जब जिनवल्लभसूरिका समय ११६९ का जिनदत्तसूरिका समय १९६६ से १२११ का है यतिजीकी गप्पों और इतिहास के विच ४०० वर्षका अन्तर है रांकों की
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सालमें लिखा है कि वि० सं. ७९८ में रांकाने एक वल्लभी में पार्श्वनाथका मन्दिर बनाया जिसपर सवा मण सोनाका ईंडा चडाया था बाद ८०० में शत्रुंजयका बडा भारी संघ निकाला इत्यादि देखो विस्तार " जैन जाति महोदय " आगे रांकोंको
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