Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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काका.
( ४३ ) मांडता था वहां नेमिचन्द्रसूरि आये दोनोने अपना दुःख निवेदन कीया सूरिजीने धर्मकी शर्तपर भविष्य वतलाया कि राजाके जरिये तुम धनवान होंगे तुमारी वृद्धावस्थामें राजा तुमारा धन छीनलेगा तुम म्लेच्छोको लाके वलभीका भंग करावोगें. इत्यादि 'निदान' एसा ही हुवा काकु पातककी पांचवी पीढीमें रांका वांका हुवा वह पाली में खेती करता था जिनवल्लभसूरिने भी भविष्य वतला खेती छोडा वैपार कराया ++ हींगलाज जानेवाला योगि शंकाके वहां रसायणकी तुंबी रख गया जिससे शंका धनाढ्य हुवा पल्लिवाल ब्राह्मयोंको नोकर रख व्यापार करनेसे पल्लिवाल धनाढ्य हो गया xx एकदा सिद्धराज जयसिंहके ५६ लक्ष सोनैयाकी जरूरत पडी कीसीने नहीं दीया तब शंकावांकाने द्रव्य दीया जिनसे राजाने सेठपद्वी दीनी तबसे रांका शेट कहलाते है इत्यादि ।
समालोचना -- अव्वल तोइस जाति के बारामें यतिजी रामलालजी नेमिचन्द्रसूरिका समय बतलाते है तब श्रीपालजी जिनदत्तसूरिका नाम लिखते है । एक खानका इतिहासमें २०० वर्षका अन्तर है तो कवांका कीसके वचनों पर विश्वास रखे ? नेमिचन्द्रसूरिका समय ६५४ का और काकु पातककी पंचवी पीढी जिनवल्लभसूरिका समय ११६६ होनेसे विचमे चार पीढीमे २१५ वर्ष लिख मारना भी मिथ्या है नेमिचन्द्रसूरि और काकु पातकका समय ६५४ का माना जावे तों उस समय वल्लभीका भंग लिख मारना महा मिथ्या है यतिजीने काकु पातकका नाम सुनके ही यह ढंचा खडा कीया है अगर वल्लभीके भंगका समय और खरतराचार्यों का समय पर ध्यान देते तो यह धोखा कभी नहीं खाते. दर असल वीरात् ७० वर्षे श्रोशीयोंमे आचार्य रत्नप्रभसूरिने महाजनवंसके १८ गोत्रकी स्थापना करी जिसमें चोथा गौत्र " बलाहा ' था उसकी वंसपरंपरा विक्रमकी आठवी शताब्दी
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