Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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धाडिवाल गौत्र.
(४१) आये की चौहान कीर्तिपाल समरसिंहने जालौर की सोनीगरी पाहाडी पर कील्ला बन्धानासे सोनीगरा कहलाया जिस्का समय वि. स. १२३६ के बादका है तो यतिजी १.२१ में सोनीगरा चौहान लिखते है यह महामिथ्या है आगे झांझणसी कौनसे बादशाहाके मंत्री थे वह भी नहीं लिखा मुसलमानोंकी तबारिखोंमे छोटी छोटी बातें भी लिखी हुई मीलती है तो ६२ लक्ष रूपयें एक भारती की बोलीमें लगा दीया जिसकी गन्ध भी नहीं ? आगे जैन एसे मूर्ख नहीं थे कि बादशाहाके देशकी आमंद तीर्थपर भारती की बोलीमें देदे और पुच्छने पर कटारी खा आपघात कर अनंत संसारी बनने को तय्यार हो जावे. यतिजी ! अगर ६२ लक्ष रूपैये झांझणसीने वीरतासे दे भी दीये हो तो वह डरपोक हो कटारी कबी नहीं खाता स्यात् एसा डरपोक हो तो यह होना असंभव है कि वह बादशाह कि आमन्दके ६२ लक्ष रूपैये भारतीकी बोलीमें चडा दे. माझणसीने रूपैये रोकड तो नहीं दीया था तो फीर कटारी खानेकी क्या दहेसत थी अस्तु ! ९२ लक्ष रूपैये दीये या कटारीया देवद्रव्यके करजदार रहे यह भी तो निर्णय यतिजीने नहीं कीया। दर असल आंचलगच्छाचार्य जयसिंहमूरिने वि. स. १२४४ में कटारमल चौहानको प्रतिबोध दे जैन बनाया उसने महावीरका मन्दिर भी कराया बाद रत्नपुरामें बोहरगत करनेसे रत्नपुरा बोहरा कहलाया कोटेचा वगैरह इनोंसे निकली हुई जातियों है देखो "जैनगोत्रसंग्रह" कटारीयोंके भाट वसावलिमें लिखा है कि दलपतसिंहजी में राजका कसूर होनेसे कटारी खाई दलपतजीरे चार
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