Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 29
________________ धाडिवाल गौत्र. (२१) गणधर चोपडादि जातियों इनोंकी अन्तर शाखाओं है देखो “जैन जाति महोदय" . (४) धाडीवाल गौत्र। वा. लि. गुजरातमें डिडुजी नामका खीची, राजपुतोंको साथ ले धाडा पाडता था पाटणका सिद्धराज जयसिंह पकडनेका बहुतोपाय कीया पर हाथ नहीं आया एकदा पट्टणका राजखजाना लुट लिया सिद्धराजने २०००० सवारोंको भेजा उस समय डिडुजी उंझाग्राममें चोरीका माल वेचता था जब २०००० सबारोने उंझा ग्रामके चौतर्फ घेरा लगा दीया उस समय जिनवल्लभरिने वासक्षेप दे दीया की वह धाडायती २०००० सवारोकों पराजय कर अपने पावों लगाया इस वातको सुन पाटणपति डिडुजीको ४८ माम इनामर्मे दे अपना सामन्त बनाया डिडुजी जैनी हुवे जीनकी धाडीवाल जाति थापन करी इत्यादि समालोचना-अव्वल तो यह वात असंभव है कि जैनाचार्य एसे धाडायतियोंकी सहायता करे व अधर्मयुक्त कार्यमें मददगार बन उसे वासक्षेप देवे वहभी एसा कि सत्यका पराजय करनेवाला. दूसरा सिद्धराज जयसिंह एसा निर्बल नहीं था कि एक धाडायति अपर्ने २०००० सवारोकों पराजय करनेवालेको ४८ ग्राम इनाम में दे जिसकी गन्धभी तवारिखोंमें न मीले । यतिजी इस ख्यातके लिखने पहले जरा पट्टणका इतिहास पढ लेते तो ज्ञात हो जाता कि सिद्धराज जयासिंह एक सामान्य राजा था ? या उनके नाम मात्रसे घडे वडे राजा गभराते थे वह राजा एक धाडायतीसे घवराके ४८ माम दे दे यह सर्वथा असंभव है दरअसल विक्रमकी इग्यारवी शतान्दमें पाटणका राजा भीमके समय पाबुपर एक डिडु नामका पँवार गुजरातमें धाडा कीया करता था उसपर राजा भीमका कोप होनेसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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