Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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चोरडिया गौत्र.
कल्पित कथाओं पर स्याही विश्वास करें । अस्तु | दरअसल उस समय चंदेरी नगर में चेदीवंशी राजा करणका राज था इतिहास कहता है कि वि. सं. ११६४ में पाट्टणका सिद्धराज जयसिंहने चंदेरीपर चढाई करी थी चंदेरी का राजा करणको पराजय कर एक सोनाकी पालखी दंडमें ली वह पालखी पाटणपतिने सोमनाथ महादेवको अर्पण करी थी वाद वि. सं. १२०६ में सोरठ पति चंदेरीपर चढाई करी उस समयतक चंदेरेमेिं राजा करणका ही राज था अर्थात् वि. सं. ११६४ से १२०६ तक चंदेर में चेदविसियोंका राज था जब यतिजी वि. सं. ११७६ में दादाजीने चंदेरीके राठोड राजाको प्रतिबोध दीया लिखा यह बिलकुल मिथ्या निर्मूल नहीं तो और क्या है ? दरअसल दादाजी जिनदत्तसूरीके करीवन् १६०० पहिले आचार्य रत्नप्रभसूरिने प्रशीयोंमें महाजनवंसके १८ गोत्र स्थापन कीया था जिसमें ११ वा गोत्र ' आदित्यनाग' स्थापन कीया था जिसकी साखा चोरडीया गूलेच्छा पारखादि है यतिजीने भी अपनी कीताब में १८ गोत्रोंके अन्दर "चणागा" अर्थात् " अदित्यनाग " गौत्र रत्नप्रभसूरि स्थापन कीया लिखा है और सिलालेखों में भी चोरडीयोंका मूल गौत्र आदित्यनाग ही लिखा जाता था एक सिलालेख नमूनाका तौर पर ग्रहांदरज कर दीया जाता है वह जैनमूर्त्तिपर खुदा हुवा है ।
वै ०
" सं १५६२ ० शु० १० रवि० श्री केशज्ञातिय श्री आदित्यनाग गोत्रे चोरडिया साखायां व ०
डालणपुत्र रत्नपान
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