Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 41
________________ लुंकड गोत्र. (३३) मुताजी लीच्छमिप्रतापजीके पास भन्सालीयोंकी उत्पत्ति और अपना खुर्शी नामा है जिसमें लिखा है कि भण्डशोल ग्राममें वि. सं. १०११ में दादाजी जिनदत्तसारजीने रावल भादोजीको प्रतिबोध दे जैन बनाया ६ पढिीबाद धर्मसीजी भंडशोल छोडी इत्यादि अब यतिजीका लेख के साथ इसकों मीलान कीया जाय तो नतो नाम मीलता है न ग्राम मीलता है न समय मीलता है परं यह ख्यात भी भाटोंसे उतारी मालुम होती है कारण १०११ में दादासाहब का जन्म तक भी नहीं था. वास्ते विचारणीय है तथा जोधपुरराज तवारिखमे भंसाली होना १११२ में लिखा है मेरे ख्यालसे तो तीनो ख्यातों भाटों की बिलकुल गलत है भंसालीयोंको ठीक निर्णयं करना जरूरी है। (९) लुंकड नाति वा० लि. मेसरी खेता बहातीके लालो-भीमो दो पुत्र था वि. सं. १५८८ में अहमदावादका बादशाह रुषतमखां के खजाना का काम करता हुवा क्रोडो रूपयोंका माल ब्राह्मणोंको दे दीया फिर बादशाहाको खबर पड़ने पर लाला भीमा भागके गोडवाड एक तपागच्छके यतिके उपाससमें लुक गया पीछेसे फोज आई न मीलनेसे वापिस गई यतिने उनको जैन बनाके लुक.ड जाति थापी इत्यादि । समालोचना- इतिहास इस वातको मंजुर नहीं करता है कि वि. सं. १५८८ में अहमदाबादमें रुषतमखां नामका कोइ बादशाह हुवा हो देखिये अहमदाबाद के बादशाहा बि. सं. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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