Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 35
________________ चोरडिया गौत्र. ( २७ ) सवतव धधुमलपुत्रेन मातृपितृ श्रे० श्री संभवनाथ बिंब प्र. श्रीउकेशगच्छे कुंदकुंदाचार्य श्रीदेवगुप्तसूरिभिः '' (श्रीमान् पुरणचंदजी नाहारका छपाया हुवा सिलालेख संग्रहसे ) यतिजीने चोरडियादिको स्वतंत्र जाति लिखी है पर इस सिलालेखसे यह सिद्ध होता है कि चोडिया जाति स्वतंत्र नहीं किन्तु आदित्यनाग गोत्रकी एक साखा है इसी माफीक चोरडियोंसे गुलेच्छा पारखादि ८५ साखायें निकली है वह सब कमलागच्छवालोंको ही गुरू मानते है हां कहांपर कमला गच्छवालोंका विहार नहीं हुवा वहांपर अज्ञ लोक अन्य गच्छकि क्रिया करने लग गये पर उनकी वंसावलियों तो आज पर्यन्त कमलागच्छके महात्मा कुलगुरु ही लिखा करते है । अस्तु । ___एक खरतरगच्छकी पट्टावलि इस समय मेरे पास है वह ३५ फीट लम्बी १ फीटकी चौडी है जिस्में गुलेच्छोंकी उत्पत्ति इस माफीक लिखी है करथोजी (चोरडीया) गालुप्राममे वसयिा क्रमशः उनकी २७ पीढी करथो. आमदेव-लालो-कालु-जाणग-करमण सेरूण-जालो-लाखण पाल्हण-आलपाल-भोमाल-वीदेव-जेदेव पददेव-बोहित्थ-जैसो-दुरगो-सीरदेव-अभेदव--महेस-कालु-सोमदेव-सोनपाल-मुशल-साहादेव-गुलराज. एवं २८ गुलराज गोलुप्रामसे वि. स. ११८४ में निकलके (नागोर) वास कीया " जवसु गोलेच्छा कहांणा" अगर २७ पीढीका ७०० वर्ष बाद करदे तों खरतरपट्टावलिसे भी विक्रम सं. ४०० तकतो चोरडिया मोजुद थे तो ११७९ में दादाजीने चोरडीया बनाया कैसे सिद्ध हो सके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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