Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 38
________________ (2.) चोरडिया गौव. कारण सब जगह चोरड़िया कमलागच्छको ही अपना गुरु मानते है इस बार आगे अदालतोंसे इन्साफ भी होचुका है जिसकी एकाद नकल वहां पर देदेना अनुचित न होगा ! मोहर छाप | श्रीजलंधरनाथजी श्रीनाथजी संघवीजी श्री फतेराजजी लिखावतो गढ जोधपुर जालौर मेडता नागोर सोजत जैतारण बीलाडा पाली गोडवाड सीवाना फलोंदी डिड़वानो परबतसर विगैरह परगना में ओसवाल अठारा स्वांपरी दीसा तथा थांरे ठेठु गरु कमलागच्छारा भट्टारक सिद्धसूरिजी है जिणोंकने इणारा चेला हुवे तीणाने गुरु करने मानजो ने जको नहीं मानसी ती दरबारमे रु १०१) कपुरका देशी ने परगना में सिकादार हुसी तीको उपर करसी तीखोरा आगला परवाणा खास इणो कने हाजर है ( १ ) महाराजश्री अजितसिंहजीरी सलामतीरो खास परवाणो स. १७५७ रा आशोज शुद्ध १५ को (२) महाराजश्री अभयसिंहजीरी सलामतीरो खास परवाणो सं. १७८१ रा जेठशुद्ध ६ को (३) महाराजावडमहाराजश्री विजयसिंहजीरी सलामतीरो खास परवाणो सं १८३५ आसाढ वद ३ को इण मुजब अगला परवाण श्रीहजुरमें मालुम हुवा तरेफिर श्रीहजुररा खास दसखतों को (४) परवाणो सं १८७७का 'वैशाख चद ७ रो हुवो तीस मुजब रहसी वीगत खाप अठारेरी तातेड, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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