Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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चोरडिया गौत्र.
(२९) दी ७४॥ शाहामें इस भैसाशाहाका दूसरा नम्बर है इसका विस्तार पूर्वक लेख श्रीमान् चन्दनमलजी नागोरी छोटी सादडीवालाने वारशासनांक ७ ता. २०-११-२५ में दीया था (२) दूसरा भैसाशाह वि. स. ५०८ के आसपास हुवा जिसका सिलालेख वर्तमान कोटा राजका अटारू ग्राम के जैनमन्दिरकी मूर्तिपर खुदा हुवा है यह लेख जोधपुरवासी इतिहास खोजी मुन्शी देवीप्रसादजीकी सोधखोल से मीला है इसी भैसाशाहका व्यापार रोडा विणजाराके साथ था केवल व्यापार ही नहीं किन्तु उन दोनों के आपसमें इतना प्रेम था कि भैसा और रोडा दोनोंका नामसे मेवाडमे भैसरोडा नाम का ग्राम वसाया था वह वर्तमानमें भी मोजुद है (३) तीसरा भैसाशाह वि. सं. ११०० के आसपास डिडवाना नगरमें हुवा जिसने डिंडवानाका कीला तथा एक कुँवा बनाया था आज भी औरतें पाणि लाती है वह कहती है कि में भैसाशाहके कुवाँसे पाणी लाई वहां के राजाके साथ अणबनावसे भैसाशाहने डिडवाना छोड भिन्नमालमें वास कीया वहांपर वि. सं. ११०८ में आचार्य देवगुप्तसूरिका पाट महोत्सव कीया भैसाशाहाकी माता शत्रुजयका संघ निकाला गूजरातमें भैसापर पाणीलाना छुडाया इसके समयमे गदइया जाति हुई विशेष खुलासा जैनजाति महोदय चोरडियोंकी ख्यातमे लिखा गया है (४) चोथा भैसाशाह नागोरमें हुवा टीकुशा बालाशा गीसुशा एवं तीन, भैसाके भाई थे चारोंभाईयोंने जगद्विख्यात नाम्वरी करीथी इन लेखोंसे यतिजीका लेख निर्मूल होजाता है। आगे चोरडियों के बारामें ज्यादा लिखनेकी आवश्यकता नहीं है
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