Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
View full book text
________________
बांठिया गौत्र.
(२३) राठोडोंको प्रतिबोध देना कैसे सिद्ध हो सकता है--अब राठोड केशवदास कोन था इसके बारामें जोधपुर तवारिखमें लिखा है कि राव जोधाजीके पुत्र वरसिंहजी के पांचवी पीढीमें केशवदासजी हुवा रावजोधाजी | है यतिजीको जरातो विचार करना था कि बिल. वरसिंहजी
कुल झूटी बातोंसे झाबक झामड कैसे मान लेगा
कि हमारे गुरु खरतर है। आगे देखिये दादासहिाजी
जीका स्वर्गवास वि. सं. १२११ में हुवा था उस जयासिंहजी समय रावसीहाजी तथा पासस्थानजीका जन्म रामसिंहजी
ही नहीं था. तो दादाजीकी भक्ति कीसने करी
और दादाजी कीसको भविष्य वतलाया वि. स. भीमसिंहजी
१२८२ में राव सिंहाजी मारवाडमें आये थे केशवदासजी | बासस्थानजीका समय १३३० का है तब दादाजीका स्वर्गवास समय १२११ का है पाठक सोच सकेगा कि यतियोंने कीधरकी ईट कीधरका पत्थर जोड ढांचा खडा कीया है दरअसल शांमड झाबक तपागच्छाचार्योंके प्रतिबोधित श्रावक है खराडी बलुंदाके कुलगुरु झांमडोंकी वंसावलि लिखतेहै विक्रमकीअग्यारहवीसे चौदहवी शताब्दीमें कीये हुवे झांमडोंके सेंकडो धर्मकार्यों तथा पन्दरवी शताब्दीमें भंवल ग्राममें बाहारसे आके मामड़वास कीया इत्यादि प्रमाणसे यतियों का लिखना निर्मूल और आकाश कुशमवत् है। मॉमड झाबक तपागच्छके है (६) बांठीया बोचा शाहा हरखावतादि
वा. लि. रणतभौवरके पँवारराजा लालसिंहके पुत्र ब्रह्मदेवको जलंधरका
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com