Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 9
________________ श्रीपार्श्वनाथाय नमः महाजन वंस मुक्तावलिका किंचित् 'परिचय' ' महाजन वंस मुक्तावलि' नामकी किताब वीकानेर निवासी उपाध्याय यतिवर्या रामलालजीने विक्रम सं. १६६७ निर्णयसागर प्रेस बंबईमें छपवाई थी पुस्तकका रंग ढंग अच्छा है और प्रस्तावना पेज पर लिखा है कि___इस किताबमें खरतरगच्छीय श्री पूज्यों और केइ विद्वानों के पुराणे दफतरोंसे मा हान भण्डारोंसे तथा वडा उपाश्रयसे प्राचीन इतिहास मीला सो मैंने इस किताबमें छपाया है + + + पुराणा इतिहास जैन धर्मियोंका जाननेकों यह ग्रन्थ अव्वल दर्जे की क्रांति दीखाता है एसा ग्रंथ भारतभूमिमें कहां भी छपके प्रकाशमें नहीं आया तब मैंने परिश्रम कीया है इत्यादि " यतिजी स्वयं वयोवृद्ध और अनुभवी है फिर खरतर गच्छीय श्री पूज्यों व विद्वानोंसे प्राचीन इतिहास मील जाने पर आपका ग्रन्थ क्रांतिकारी बन जाये इसमें शंका ही क्या है ? अगर यतिजी जैन जातिके बारामें इतना परिश्रम न करते तो जैन जातिका एसा इतिहास स्यात् ही प्रकाशमें आ सकता व जैन जातिका गौरव आपका ग्रन्थसे प्रगट हुवा हैं वह सदाके लिये अस्त ही हो जाता, कारण जैन जातिका एसा प्राचीन इतिहास सिवाय खरतर यतियोंके : मीलना ही असंभव था. इतना ही नहीं पर ऐसे इतिहासलेखक भी दूसरे गच्छोमें स्यात् ही मील सक्ते श्रापका बनाया हुश्रा ऐतिहासिक प्रन्थ एसे प्रमायोंसे प्रमाणिक है कि जिसको पढके प्राजके इतिहा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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