Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana Author(s): Gyansundar Maharaj Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala View full book textPage 8
________________ · २२ श्री श्रीमालादि श्रेष्टिवेद मुत्तादि ३० संचेति आदि ४४ अदित्यनाग चोरडियादि ८५ जातियों ७४ ७४ "" भूरि भटेवरादि २० जातियों ७५ ७५ भद्र समदडियादि २६ चिट देसरडादि १६, ७५ ७५ ७६ | प्रचलगच्छीय कुमट काजलीयादि १९ डिडु कोचरादि २१ कनोजिया दि लघुष्टि आदि चरड - काकरीया सुघडगोत्र लुंग चंडालीया आर्यलुणावत १७ १६ 32 "" در "" " " ७३ | डिया, हथुडीया, मडोवरा, मल, गुदे ७३ चा, छाजेड, राखेचा, अढारा गोत्रका यंत्र 22 ७६ ७६ ७७ ७७ ७७ ७७ टिया, काग, गुरुड, सालेचा, वागरेचा, कुकम चोपडा, सफला, नक्षत्र, आभड, छावत, तुंड वाघमार, पछो चार गोत्रका यंत्र अठारागोत्रका यंत्र कमलागच्छकी पोसालों कोरंटगच्छीय गोल तपागच्छीय 22 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat "" मलधारण च्छीय पुनमियागच्छीय नाणावालगच्छीय,, सुरांणाच्य पल्लिवाल गच्छीय कंदरसागच्छीय सांडेरागच्छीय कर्मचंद वच्छावत श्रीपूजकी पोलिसी " " 2.2 " "3 " ? ^ ^ ^ ^ ^ ^ ^ ^ ♪ ♫♫ G ७८ ७ 98 Τ ८२ ८३ ८३ ८४ ૮૪ ८४ ८४ ८५ ८५ ८५ ८५ ८६ ८७ www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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