Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana Author(s): Gyansundar Maharaj Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala View full book textPage 6
________________ GEECTEDGC508018DGEDOX श्रीमान्मान्यवर - यादव ( भाटी ) वंशी मुत्ताजी हरषराजजी साहब-बीलाडा. आप श्रीमान्, आपके घरका जरूरी कार्य व वकालत के कार्यों.... ........ इतनी मुदतके लिये बंध रख मेरी बाई ( पुत्रि ) रत्नकुँवरीकी सादिमें आपने हरेक कार्योंमें तनतोड मदद करी है इतना ही नहीं बल्के मुझे जो प्रारंभसे अन्त तकके कार्यों में जो सफलता मीली वह सब आप ही की सहायताका फल है। आपका इस महान् उपकारको में किस शब्दों में लिखुं ! कारण एसा कोई शब्द ही मेरे पास नहीं है कि जिससे में आपकी तारीफ लिख सकुं आपसे यह याचना है कि महेरबानी कर मुझे कृतार्थ बननेका समय शीघ्र बक्सीस करावे । आपका कृपापात्र, खीवराज मुत्ता. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat बीलाडा - (मद्रास) www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 102