Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana Author(s): Gyansundar Maharaj Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala View full book textPage 5
________________ धन्यवाद के साथ स्वीकार HO पँवार वंश मुगुटमणि महाराजाधिराज उत्पलदेवका वंश परम्पर में श्रेष्ट गौत्र वैद्यमुत्ता शाखायां श्रेष्टिवर्य्य श्रीमान् ताराचंदजी खीवराजजी बीलाडा ( मद्रास ) वालोंने अपनी सुपुत्र रत्नकुँवरी के लग्न की खुशाली में मुनिश्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज का सदुपदेश से आपने बीलाडा का बडामन्दिर में अठाई महोत्सव आठ दिन बड़े धामधूमसे संगीतके साथ चोसठ प्रकार की पूजा पढाई मयबेंडवाजोंके प्रभु सवारी चढाई गई तथा रु. २५) श्री ज्ञानप्रकाश मित्रमण्डलमें भेट कया श्री जैन पाठशालामें मावारी दो रूपैया देने का बचन दीया और रू. २५१) ज्ञानवृद्धि के लिये श्री रत्नप्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला मुः फलोदी को अर्पण कर मंगल मनाया उसे हम सहर्ष उपकार के साथ स्वीकार कर आप श्रीमान को धन्यबाद देते है और अन्य दानवीर धनाढ्योंसे निवेदन करते है कि एसे मंगलिक कार्यो में जहां हजारो रूपैये खरच किये जाते हैं वहां थोडा बहुत रूपैये से पवित्र कार्यों के लिये निकाल अपनी चल लक्ष्मीको अचल अवश्य बनावे किमधिकम् । आपका जोरावरमल वैद मेनेजर श्रीरत्नप्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला ( फलोदी ) 0000000000 20000 0000 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 品 www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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