Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 7
________________ विषयानुक्रमणिका. ४१ २२ विषय मुक्तावलिः का परिचय प्रस्तावना महाजन वंस १८ गौत्र संचेति गोत्र और समालोचना वरडिया ,, चोपडा , , धाडिवाल ,, , झामड-झाबक बांठिया गोत्र चोरडिया भन्सालि लुकड गोत्र माय-लुणावत बाफणा कटारिया डागामालु रांकावांका राखेचा लुणिया डोसीगोत्र सुरांणागोत्र प्रागेरिया सुघड दुगड गंगदुधेरिया पृष्ट | बोत्थरागोत्र | गेहलडा ६ | लोंढा बुरड नाहार ,, ११ । छाजेडगोत्र , १५ संघि भंडारी डागा ,, १७ ढहागोत्र १९ पीपाडा छलाणिगोडावत कटोतीया भुतेडिया २३ जडिया कांकरीया २५ । श्रीश्रीमाल ३२ पोकरणा कोचर और मुनोत श्रीमाल पोवाड | वैदमुत्ता द्वितीयांक. पार्श्व परम्परा सातगच्छों के नाम तातेडादि २२ जातियों बाफणादि ५२,, करणांवटादि १४, बलाहा रांकादि २६, मोरख पोकरणादि १७, कुलहट सुरवादि १%, ४६ | विरहट भुरंटादि १७ ,, ७२ ७२ ७३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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