Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 11
________________ ५१९ १-कंकाली टीलेके एक जैनमंदिरके पास एक लम्बा पट मिला है। जैनमंदिरके पास मिलने से यह जैनपट ही मालूम होता है । इस पर लेख नहीं है । कदाचित् यह उस 'देवनिर्मितस्तूप' के तोरणकी एक पटरी हो । यह निश्चय करके प्राचीन है। इस पटमें विशेष बात यह है कि इसमें स्तूपके पूजनका दृश्य दिखाया गया है। इस पटके एक ओर बीच में स्तूपका चित्र है । स्तूपके बायें ओर एक सुपर्ण और उसके पीछे तीन किन्नर हैं और दायें ओर एक सुपर्ण और दो किन्नर I हैं । तीसरा किन्नर यहाँ पर और होगा क्योंकि उस स्थान पर कुछ मिट गया है । स्तूप के समीप इधर उधर दो वृक्ष हैं । इन्हीं पर सुपर्ण बैठे हुए अथवा उड़ते हुए मालूम होते हैं । इन सुपर्णों और किन्नरों में से कुछके हाथोंमें कटोरे और कुछके हाथोंमें पुष्प अथवा चमर हैं । पटके पीछे की ओर एक जलूसका दृश्य है। इसमें तीन घोड़े, एक हाथी और एक बैलगाड़ी जा रही है। बैलोंकी पूँछ उनकी गर्दन की रस्सी से बंधीं हैं; ऐसा ही सांचीके बौद्ध स्तूपोंके चित्रों में भी है। गाड़ी में स्त्री व पुरुष सवार हैं। घोड़ों पर भी मनुष्य सवार हैं। दो घोड़ों के साथ साईस भी हैं । कदाचित् यह जलूस पटकी दूसरी ओर बने हुए स्तूपके पूजन के लिए जारहा है । २ - एक और पट मिला है । यह भी किसी स्तूपके तोरणका अंश मालूम होता है। यह पर श्वेताम्बर - संप्रदायका मालूम होता है । इसके एक ओर एक मुनि चार मनुष्यों को उपदेश दे रहे हैं। इनमें एक राजा अथवा राजकुमार मालूम होता है। क्योंकि उसके ऊपर दूसरा मनुष्य छाता लगाये हुए है और उसके सिर पर एक मुकुट लगा है जो महाराज हुविष्क के सिक्कोंमें अंकित चित्रोंके मुकुटसे बहुत मिलता है । पटके पीछे की ओर ऊपरके अंशमें एक स्तूप है और इसके दोनों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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