Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 68
________________ पुरुषको नरक में पहुँचाया है, तब क्या ऋतुस्नाता होकर भोग न करने पर स्त्रीको तिर्यचगतिमें न भेजा होगा; जरूर भेजा होगा । पराशरजीने तो ऐसी स्त्रीको भी सीधा नरकमें ही भेजा है । और साथ ही बारबार विधवा होने का भी फतवा ( धर्मादेश ) दे दिया है । यथा: ऋतुस्नाता तु या नारी भर्तारं नोपसर्पति । सामृता नरकं याति विधवा च पुनः पुनः ॥ ४-१४ ॥ "" - पराशर स्मृतिः । इसी प्रकार हिन्दूधर्म के बहुतसे फुटकर श्लोक इस त्रिवर्णाचार में पाये जाते हैं, जो या तो ज्यों के त्यों या और कुछ परिवर्तन के साथ रक्खे गये हैं । 66 इस तरह पर धर्मविरुद्ध कथनोंके ये कुछ थोडेसे नमूने हैं । और इनके साथ ही इस ग्रंथकी परीक्षा भी समाप्त की जाती है । अन्तमें जैन विद्वानोंसे मेरा सविनय निवेदन है कि यदि उनमें से कोई इस त्रिवर्णाचारको आर्ष ग्रंथ या जैन ग्रंथ समझते हों और उनके पास मेरे लेखोंके विपक्षमें कोई प्रमाण मौजूद हों तो वे कृपाकर अवश्य उन्हें शीघ्र ही प्रकाशित करें । अन्यथा उनका यह कर्तव्य होना चाहिये कि वे ऐसे ग्रंथोंके विपक्ष में अपनी सम्मतियाँ प्रगट करके उनका निषेध करें. जिससे आगामीको इन जाली और बनावटी ग्रंथोंके कारण जैनधर्म और जैन समाज पर कुठाराघात न हो सके । इत्यलम् । " देवबन्द, जि. सहारनपुर, ता० १५-८-१४ } Jain Education International समाजसेवक जुगल किशोर मुख्तार | निवेदन | सम्पादक महाशय के अन्यत्र चले जानेके कारण प्रूफ संशोधनमें गलतियाँ रहना संभव है । पाठक क्षमा करें । व्यवस्थापक For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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