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"निमज्योन्मज्याचम्य अमृते अमृतोद्भवे पंचगव्यस्नानं सूर्याभिमुखं स्थित्वा शरीर शुद्धिस्नानं कुर्यात् ।......संध्याबन्दनानन्तरं सूर्योपस्थापनं
कर्तव्यम् ।” और भी कई स्थानोंपर पंचगव्यसे स्नान करनेका विधान किया है । एक स्थानपर, इसी पर्वमें, नित्यस्नानके लिए गंगादि नदियोंके किनारे पर पंचगव्यादिके ग्रहण करनेका उपदेश दिया है । यथाः
"अथातो नित्य स्नानार्थं गंगादि महानदी नदार्णवतीरे पंचगव्यादि कुशतिलाक्षत तीर्थमृत्तिका गहीत्वा........." यह सब कथन भी हिन्दू धर्मका है । हिन्दुओंके यहाँ ही गोमय और गोमूत्रका बहुत बड़ा माहात्म्य है । वे इन्हें परम पवित्र मानते हैं और इनसे स्नान करना तो क्या, इनका भक्षण तक करते हैं। उनके वाराहपुराणमें पंचगव्यके भक्षणसे तत्क्षण जन्मभरके पापोंसे छूटना लिखा है । यथाः
"गोशकृद्विगुणं मूत्रं पयः स्यात्तच्चतुर्गुणम् । घृतं तद्विगुणं प्रोक्तं पंचगव्ये तथादधि ॥ सौम्ये मुहूर्ते संयुक्त पंचगव्यं तु यः पिवेत् ।
यावज्जीवकृतात्पापात् तत्क्षणादेवमुच्यते ॥" * गोमयको, उनके यहाँ, साक्षात् यमुना और गोमूत्रको नर्मदा तीर्थ वर्णन किया है ।* विष्णुधर्मोत्तरमें गोमूत्रके स्नानसे सब पापोंका नाश होना लिखा है । यथाः
गोमूत्रेण च यत्स्नानं सर्वाघविनिसूदनम् ।" इसी प्रकार मूर्योपस्थापनादिक ऊपरका सारा कथन हिन्दुओंके अनेक ग्रंथोंमें पाया जाता है । जैनधर्मसे इस कथनका कोई सम्बन्ध नहीं मिलता, न जैनियोंके आर्ष ग्रंथोंमें ऐसा विधि
* देखो शब्दकल्पद्रुमकोषमें 'पंचगव्यशब्द' । * गोमयं यमुनासाक्षात् गोमूत्रं नर्मदा शुभा।
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