Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 52
________________ ५६० जाते हैं जिस तरह कि सूर्यके सन्मुख अंधकार विलय जाता है, और अन्तिम वाक्य यह है कि अनेक द्रहोंसे उत्पन्न होनेवाली और समुद्र में जा मिलनेवाली अथवा समुद्रसहित सभी नदियाँ तीर्थ देवता हैं और सभी मुक्ति तथा सौभाग्यकी देनेवाली हैं । इस प्रकार नदियोंके स्मरण, ध्यान, स्पर्शन या सेवनसे सब सुख सौभाग्य और मुक्तिका मिलना तथा सम्पूर्ण पापोंका नाश होना वर्णन किया है। इन श्लोकों तथा अघके चढ़ानेके बाद स्नानका एक 'संकल्प' दिया है । उसमें भी मन, वचन, कायसे उत्पन्न होनेवाले समस्त पापों और संपूर्ण अरिष्टोंको नाश करनेके लिए तथा सर्व कार्यों की सिद्धिके निमित्त देव ब्राह्मणके सन्मुख नदी तीर्थमें स्नान करना लिखा है । यथा: .... पुण्यतिथौ सर्वारिष्टविनाशनार्थ शांतिक पौष्टिकादि सकलकर्मसिद्धिसाधनयंत्र-मंत्र-तंत्र - विद्याप्रभाव कसिद्धिसाधकसंसिद्धिनिमित्तं कायिकवाचिकमानसिकचतुर्विध पापक्षयार्थ देवब्राह्मणसनिधौ देह शुद्धयर्थं सर्व पापक्षयार्थ अमुक तीर्थं स्नानविधिना स्नानमहं करिष्ये ॥” यह सब कथन जैनमतके बिलकुल विरुद्ध है । जैनधर्ममें न नदियोंको धर्मतीर्थ माना है और न तीर्थदेवता । जैनसिद्धान्त के अनुसार नदियों में स्नान करने या नदियोंका ध्यानादिक करने मात्र से पापोंका नाश नहीं हो सकता । पापोंका नाश करने के लिए वहाँ सामायिक प्रतिक्रमण, ध्यान और तपश्चरणादिक कुछ दूसरे ही उपायों का वर्णन है । वास्तवमें, ये सब बातें हिन्दू धर्मकी हैं। नदियोंमें ऐसी अद्भुत 1 शक्तिकी कल्पना उन्हींके यहाँ की गई है । और इसीलिए हरसाल लाखों हिन्दू भाई दूर दूरसें, अपना बहुतसा द्रव्य खर्च करके, हरिद्वारादि १. अमावस्या तथा श्रावणकी पौर्णमासीको इसी पर्व में पुण्यतिथि लिखा है और उनमें स्नानकी प्रेरणा की है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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